________________
[ १३६
गाथा ३५]
द्वितीयोऽधिकारः चूलिकासहितलक्षयोजनप्रमाणं मेरुत्सेधमानमधिकरज्जूप्रमाणं यदाकाशक्षेत्रं तत्पर्यन्तं सौधर्मेशानसंज्ञं स्वर्गयुगलं तिष्ठति । ततः परमर्दाधिकैकरज्जुपर्यन्तं सनत्कुमारमाहेन्द्रसंज्ञं स्वर्गयुगलं भवति, तस्मादद्धरज्जुप्रमाणाकाशपर्यन्तं ब्रह्मब्रह्मोत्तराभिधानं स्वर्गयुगलमस्ति, ततोऽप्य रज्जुपर्यन्तं लांतवकापिष्टनामस्वर्गयुगलमस्ति, ततश्चाद्धं रज्जुपर्यन्तं शुक्रमहाशुक्राभिधानं स्वर्गद्वयं ज्ञातव्यम्, तदनंतरम रज्जुपर्यन्तं शतारसहसारसंशं स्वर्गयुगलं भवति, ततोऽप्य रज्जुपर्यन्तमानतप्राणतनाम स्वर्गयुगलं, ततः परमर्द्ध रज्नुपर्यन्तमाकाशं यावदारणाच्युताभिधानं स्वर्गद्वयं ज्ञातव्यमिति । तत्र प्रथमयुगलद्वये स्वकीयस्वकीयस्वर्गनामानश्चत्वार इन्द्रा विज्ञेयाः, मध्ययुगलचतुष्टये पुनः स्वकीयस्वकीयप्रथमस्वर्गाभिधान एकैक एवेन्द्रो भवति, उपरितनयुगलद्वयेऽपि स्वकीयस्वकीयस्वर्गनामानश्चत्वार इन्द्रा भवन्ति ; इति समुदायेन षोडशस्वर्गेषु द्वादशेन्द्रा ज्ञातव्याः। षोडशस्वर्गादूर्ध्वमेकरज्जुमध्ये नववेयकनवानुदिशपञ्चानुत्तरविमानवासिदेवास्तिष्ठन्ति । ततः परं तत्रैव द्वादशयोजनेषु गतवष्टयोजनबाहुल्या मनुष्यलोकवत्पञ्चाधिकचत्वारिंशल्लक्षयोजनविस्तारा मोक्षशिला भवति । तस्या उपरि घनोदधिधनवात तनुवात
योजन प्रमाण मेरु की ऊँचाई का प्रमाण है, उस मान को आदि करके डेढ़ रज्जु प्रमाण जो
आकाश धोत्र है वहाँ तक सौधर्म तथा ईशान नामक दो स्वर्ग है । इसके ऊपर डेढ़ रज्जुपर्यंत सानत्कुमार और माहेन्द्र नामक दो स्वर्ग हैं। वहाँ से अर्धरज्जु प्रमाण आकाश तक ब्रह्म तथा ब्रह्मोत्तर नामक स्वर्गों का युगल है । वहाँ से भी आधे रज्जु तक लांतव और कापिष्ट नामक दो स्वर्ग हैं। वहाँ से आधे रज्जु प्रमाण आकाश में शुक्र तथा महाशुक्र नामक स्वर्गों का युगल जानना चाहिए। उसके बाद आधे रज्जु तक शतार और सहस्रार नामक स्वर्गों का युगल है । उसके पश्चात् आधे रज्जु तक आनत व प्राणत दो स्वर्ग हैं । तदनन्तर
आधे रज्जुपर्यंत आकाश तक श्रारण और अच्युत नामक दो स्वर्ग जानने चाहिएँ। उनमें से पहले के दो युगलों ( ४ स्वर्गों) में तो अपने २ स्वर्ग के नाम वाले (सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, महेन्द्र) चार इन्द्र हैं, बीच के चार युगलों ( ८ स्वर्गों) में अपने २ प्रथम स्वर्ग के नाम का धारक एक-एक ही इन्द्र है। (अर्थात् ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्ग का एक इन्द्र है
और वह ब्रह्म इन्द्र कहलाता है । ऐसे ही बारहों स्वर्ग तक आठ स्वर्गों में चार इन्द्र जानने), इनके ऊपर दो युगलों ( ४ स्वर्गों) में भी अपने २ स्वर्ग के नाम के धारक चार इन्द्र होते हैं । इस प्रकार समुदाय से सोलह स्वाँ में बारह इन्द्र जानने चाहिये । सोलह स्वर्गों से ऊपर एक राजु में नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश और पांच अनुत्तर विमान-वासी देव हैं। उसके आगे बारह योजन जाने पर आठ योजन मोटी और ढाई द्वीपके बराबर पैंतालीस लाख योजन विस्तारवाली मोक्षशिला है ।उस मोक्षशिलाके ऊपर घनोदधि, घनवात तथा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org