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वृहद्रव्यसंग्रह
[ गाथा ३५ नंच, परिहारविशुद्धिस्तुप्रमत्ताप्रमत्तगुणस्थानद्वये, सूक्ष्मसांपरायचारित्रं पुनरेकस्मिन्नेव सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थाने, यथाख्यातचारित्रमुपशान्तकषायक्षीणकषायसयोगिजिनायोगिजिनाभिधानगुणस्थानचतुष्टये भवतीति । अथ संयमप्रतिपक्षं कथयति-संयमासंयमसंज्ञं दार्शनिकायैकादशभेदभिन्न देशचारित्रमेकस्मिन्नेव पश्चमगुणस्थाने ज्ञातव्यम् । असंयमस्तु मिथ्यादृष्टिसासादनमिश्राविरतसम्यग्दृष्टिसंज्ञगुणस्थानचतुष्टये भवति । इति चारित्रव्याख्यानं समाप्तम् ।
एवं व्रतसमितिगुप्तिधर्मद्वादशानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्राणां भावसंवरकारणभूतानां यद्व्याख्यान कृतं, तत्र निश्चयरत्नत्रयसाधकव्यवहाररत्नत्रयरूपस्य शुभोपयोगस्य प्रतिपादकानि यानि वाक्यानि तानी पापास्रवसंवरणानि ज्ञातव्यानि । यानि तु व्यवहाररत्नत्रयसाध्यस्य शुद्धोपयोगलक्षणनिश्चयरत्नत्रयस्य प्रतिपादकानि तानि पुण्यपापद्वयसंवरकारणानिभवन्तीति ज्ञातव्यम् । अत्राह सोमनामराजश्रेष्ठी-- भगवन्नेतेषु व्रतादिसंवरकारणेषु मध्ये संवरानुप्रेक्षैव सारभूता, सा चैव संवरं करिष्यति किं विशेषप्रपञ्चेनेति । भगवानाह–त्रिगुप्तिलक्षणनिर्विकल्पसमाधि
स्थानों में होता है । सूक्ष्म-सांपराय चारित्र-एक सूक्ष्म-सांपराय दसवें गुणस्थान में ही होता है । यथाख्यात चारित्र-उपशांत कषाय, क्षीण कषाय, सयोगिजिन और अयोगिजिन इन चार गुणस्थानों में होता है। अब संयम के प्रतिपक्षी ( संयमासंयम और असंयम ) को कहते हैं-दार्शनिक आदि ग्यारह प्रतिमारूप संयमासंयम नाम वाला देश चारित्र, एक पंचम गुणस्थान में ही जानना चाहिए । असंयम-मिथ्यादृष्टि, सासादन, मिश्र और अविरत-सम्यग्दृष्टि इन चार गुणस्थानों में होता है । इस प्रकार चारित्र का व्याख्यान समाप्त हुआ।
इस प्रकार भावसंवर के कारणभूत व्रत, समिति, गुप्ति, धर्म, द्वादश अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र, इन सबका जो व्याख्यान किया, उसमें निश्चय रत्नत्रय का साधक व्यवहार रत्नत्रय रूप शुभोपयोग के निरूपण करने वाले जो वाक्य हैं, वे पापास्राव के संवर में कारण जानने चाहिए । जो व्यवहार रत्नत्रय से साध्य शुद्धोपयोग रूप निश्चय रत्नत्रय के प्रतिपादक वाक्य हैं, वे पुण्य-पाप इन दोनों आस्रवों के संवर के कारण होते हैं, ऐसा समझना चाहिये।
.. यहाँ सोम नामक राजसेठ कहता है कि हे भगवन् ! इन व्रत, समिति आदिक संवर के कारणों में संवरानुप्रेक्षा हो सारभूत है, वही संवर कर देगी फिर विशेष प्रपंच से क्या प्रयोजन ? भगवान् नेमिचन्द्र आचार्य उत्तर देते हैं-मन वचन काय इन तीनों की गुप्ति
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