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१४० ] वृहद्रव्यसंग्रहः
[गाथा ३५ त्रयमस्ति । तत्र तनुपातमध्ये लोकान्ते केवलज्ञानाद्यनन्तगुणसहिताः सिद्धाः तिष्ठन्ति ।
इदानीं स्वर्गपटलसंख्या कथ्यते—सौधर्मेशानयोरेकत्रिंशत् , सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्त, ब्रह्मब्रह्मोत्तरयोश्चत्वारि, लान्तवकापिष्टयोदयम् , शुक्रमहाशुक्रयोः पटलमेकम् , शतारसहस्रारयोरेकम् , आनतप्राणतयोस्त्रयम्, आरणाच्युतयोस्त्रयमिति। नवसु प्रेवेयकेषु नवकं, नवानुदिशेषु पुनरेक, पश्चानुत्तरेषु चैकमिति समुदायेनोपयुपरि त्रिषष्टिपटलानि ज्ञातव्यानि । तथा चोक्तम्- "इगत्तीससत्तचत्तारिदोणिएक्केक्कछक्कचदुकप्पे । तित्तियएक्ककिंदियणामा उडु आदि तेसट्ठी।"
अतः परं प्रथमपटलव्याख्यानं क्रियते । ऋजु विमानं यदुक्त पूर्व मेरुचूलिकाया उपरि तस्य मनुष्यक्षेत्रप्रमाणविस्तारस्येन्द्रकसंज्ञा । तस्य चतुर्दिग्भिागेष्वसंख्येययोजनविस्ताराणि पंक्तिरूपेण सर्वद्वीपसमुद्र खूपरि प्रतिदिशं यानि त्रिषष्टिविमानानि तिष्ठन्ति तेषां श्रेणीबद्धसंज्ञा । यानि च पंक्तिरहितपुष्पप्रकरवद्विदिक्चतुष्टये तिष्ठन्ति तेषां संख्येयासंख्येययोजनविस्ताराणां प्रकीर्णकसंज्ञा । इति
तनुवात नामक तीन वायु हैं । इनमें से तनुवात के मध्य में तथा लोक के अन्त में केवल-ज्ञान आदि अनन्त गुणों सहित सिद्ध परमेष्ठी हैं ।
अब स्वर्ग के पटलों की संख्या बतलाते हैं। सौधर्म और ईशान इन दो स्वर्गों में इकत्तीस, सानत्कुमार तथा माहेन्द्रमें सात, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तरमें चार, लांतव तथा कापिष्ट में दो, शुक्र-महाशुक्र में एक, शतार-सहस्रार में एक. आनत-प्राणत में तीन और आरण-अच्युत में भी तीन पटल हैं । नव वेयकों में नौ, नव अनुदिशों में एक व पंचानुत्तरों में एक पटल है । ऐसे समुदाय से ऊपर-ऊपर ६३ पटल जानने चाहिये । सो ही कहा है-"सौधर्म युगल में ३१, सानत्कुमार युगल में ७, ब्रह्म युगल में ४, लांतव युगल में २, शुक्र युगल में १, शतार युगल में १, आनत आदि चार स्वर्गों में ६, प्रत्येक तीनों ग्रैवेयकों में तीन-तीन, नव अनुदिशा में १, पंचानुत्तरों में एक, ऐसे समुदाय से ६३ इन्द्रक होते हैं।"
इसके आगे प्रथम पटल का व्याख्यान करते हैं । मेरु की चूलिका के ऊपर मनुष्य क्षेत्र प्रमाण विस्तार वाले पूर्वोक्त ऋजु विमान की इन्द्रक संज्ञा है। उसकी चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में, सब द्वीप समुद्रों के ऊपर, असंख्यात योजन विस्तार वाले पंक्तिरूप, ६३-६३ विमान हैं; उनकी श्रेणीबद्ध' संज्ञा है । पंक्ति बिना पुष्पों के समान चारों विदिशाओं में संख्यात व असंख्यात योजन विस्तार वाले जो विमान हैं, उन विमानों की 'प्रकीर्णक'। संज्ञा है । इस प्रकार समुदाय से प्रथम पटल का लक्षण जानना चाहिए। उन विमानों में से
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