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क्षेपक गाथा १-२] चूलिका
. [७५ णामिनौ जीवपुद्गलौ स्वभावविभावपरिणमाभ्यां कृत्वा, शेषचत्वारि द्रव्याणि विभावव्यञ्जनपर्यायाभोवान्मुख्यवृत्या पनरपरिणामीनीति । "जीव" शुद्धनिश्चयनयेन विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावं शुद्धचैतन्यं प्राणशब्देनोच्यते तेन जीवतीति जीवः । व्यवहारनयेन पुनः कर्मोदयजनितद्रव्यभावरूपैश्चतुर्भिः प्राणैर्जीवति, जीविष्यति, जीवितपूर्वो वा जीवः । पद्गलादिपञ्चद्रव्याणि पुनरजीवरूपाणि । "मुत्त" अमूर्ते शुद्धात्मनो विलक्षणस्पर्शरसगन्धवर्णवती मूर्तिरुच्यते, तत्सद्भावान्मृतपुद्गलः। जीवद्रव्यं पुनरनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण मूर्तमपि, शुद्धनिश्चयनयेनामूत्तम् , धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि चाम नि । “सपदेसं" लोकमात्रप्रमितासंख्येयप्रदेशलक्षणं जीवद्रव्यमादिं कृत्वा पञ्चद्रव्याणि पञ्चास्तिकायसंज्ञानि सप्रदेशानि । कालद्रव्यं पुनर्बहुप्रदेशत्वलक्षणकायत्वाभावादप्रदेशम् । 'एय' द्रव्यार्थिकनयेन धर्माधर्माकाशद्रव्याण्येकानि भवन्ति । जीवपुद्गलकालद्रव्याणि पुनरनेकानि भवन्ति । 'खेत्त' सर्वद्रव्याणामवकाशदानसामर्थ्यात् क्षेत्रमाकाशमेकम् । शेषपञ्चद्रव्याण्यक्षेत्राणि । 'किरियाय' क्षेत्रात्क्षेत्रान्तरगमनरूपा परिस्पन्दवती चलनवती क्रिया सा विद्यते ययोस्तौ क्रियावन्तौ जीवपुद्गलौ । धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि
स्वभाव तथा विभाव पर्यायों द्वारा परिणाम से जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य परिणामी हैं; शेष चार द्रव्य (धर्म, अधर्म, आकाश, काल ) विभावव्यंजन पर्याय के अभाव की मुख्यता से अपरिणामी हैं। "जीव"-शुद्ध निश्चयनय से निर्मल ज्ञान, दर्शन स्वभाव रूप शुद्ध चैतन्य को 'प्राण' कहते हैं, उस शुद्ध चैतन्य रूप प्राण से जो जीता है वह जीव है । व्यवहारनय से कर्मों के उदय से प्राप्त द्रव्य तथा भाव रूप चार प्रकार के जो इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छवास नामक प्राण से जो जीता है, जीवेगा और पहले जीता था वह जीव है । पुद्गल आदि पांच द्रव्य अजीव रूप हैं। "मुत्तं" शुद्ध आत्मा से विलक्षण स्पर्श, रस, गन्ध तथा वर्ण वाला मूर्ति कहा जाता है, उस मूर्ति के सद्भाव से पुद्गल मूर्त है। जीवद्रव्य अनुपचरित असद्भूत-व्यवहारनय से मूर्त है, किन्तु शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा अमूर्त है। धर्म. अधर्म, आकाश और कालद्रव्य भी अमूर्तिक हैं । "सपदेसं" लोकाकाश के बराबर असंख्यात प्रदेशों को धारण करने से पंचास्तिकाय नामक जीव आदि पांच द्रव्य बहु-प्रदेशी हैं और बहु-प्रदेश रूप कायत्व के न होने से कालद्रव्य अप्रदेश (एक-प्रदेशी) है । “एय" द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा धर्म, अधर्म तथा आकाश ये तीन द्रव्य एक-एक हैं । जीव, पुद्गल तथा काल ये तीन द्रव्य अनेक हैं। "खेत्त" सब द्रव्यों को स्थान देने का सामर्थ्य होने से क्षेत्र एक आकाश द्रव्य है, शेष पांच द्रव्य क्षेत्र नहीं हैं। "किरियाय" एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में गमन रूप हिलने वाली अथवा चलने वाली जो क्रिया है, वह क्रिया जिनमें है ऐसे क्रियावान् जीव, पुद्गल ये दो द्रव्य हैं । धर्म, अधर्म,
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