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[८१
भूमिका]
द्वितीयोऽधिकारः जीवौ द्वावेव पदार्थाविति । तत्र परिहारः-हेयोपादेयतत्वपरिज्ञानप्रयोजनार्थमास्रवादिपदार्थाः व्याख्येया भवन्ति । तदेव कथयति-उपादेयतत्त्वमक्षयानन्तसुखं, तस्य कारणं मोक्षः, मोक्षस्य कारणं संवरनिर्जराद्वयं, तस्य कारणं विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावनिजात्मतत्त्वसम्यश्रद्धानज्ञानानुचरणलक्षणं निश्चयरत्नत्रयस्वरूपं, तत्साधकं व्यवहाररत्नत्रयरूपं चेति । इदानी हेयतत्वं कथ्यते-आकुलत्वोत्पादकं नारकादिदुःखं निश्चयेनेन्द्रियसुखं च हेयतत्त्वम् । तस्य कारणं संसारः, संसारकारणमात्रवबन्धपदार्थद्वयं, तस्य कारणं पूर्वोक्तव्यवहारनिश्चयरत्नत्रयाद्विलक्षणं मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रत्रयमिति । एवं हेयोपादेयतत्वव्याख्याने कृते सति सप्ततत्वनवपदार्थाः स्वयमेव सिद्धाः।
___इदानीं कस्य पदार्थस्य कः कति कथ्यते—निजनिरञ्जनशुद्धात्मभावनोत्पन्नपरमानन्दकलक्षणसुखामृतरसास्वादपराङ्मुखो बहिरात्मा भण्यते । स चासवबन्धपापपदार्थत्रयस्य कर्ता भवति । कापि काले पुनर्मन्दमिथ्यात्वमन्दकषायोदये सति भोगाकांक्षादिनिदानबंधेन भाविकाले पापानुबंधिपुण्यपदार्थस्यापि
अजीव इन दो पदार्थों में अन्तर्भाव कर लेने से जीव तथा अजीव ये दो पदार्थ सिद्ध होते हैं ? इन दोनों शंकाओं का परिहार करते हैं कि-'कौन तत्त्व हेय है और कौन तत्त्व उपादेय है' इस विषय का परिज्ञान कराने के लिये आस्रव आदि पदार्थ निरूपण करने योग्य हैं । इसी को कहते हैं, अविनाशी अनन्तसुख उपादेय तत्त्व है। उस अक्षय अनन्त सुख का कारण मोक्ष है, मोक्ष के कारण संवर और निर्जरा हैं। उन संवर और निर्जरा का कारण, विशुद्ध ज्ञानदर्शन स्वभाव वाला निजात्म तत्त्व का सम्यक्-श्रद्धान, ज्ञान तथा आचरण रूप निश्चय रत्नत्रय है तथा उस निश्चय रत्नत्रय का साधक व्यवहाररत्नत्रय है। अब हेयतत्त्व को कहते हैं-आकुलता को उत्पन्न करने वाला, नरकगति आदि का दुःख तथा निश्चय से इन्द्रियजनित सुख भी हेय यानी त्याज्य है, उसका कारण संसार है और संसार के कारण आस्रव तथा बंध ये दो पदार्थ हैं, और उस आस्रव का तथा बंध का कारण पहले कहे हुए व्यवहार, निश्चयरत्नत्रय से विपरीत मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान तथा मिथ्याचारित्र हैं । इस प्रकार हेय और उपादेय तत्त्व का निरूपण करने पर सात तत्त्व तथा नौ पदार्थ स्वयं सिद्ध हो गये।
अब किस पदार्थ का कर्ता कौन है ? इस विषय का कथन करते हैं। निज निरंजन शुद्ध आत्मा से उत्पन्न परम-आनन्द रूप सुखामृत-रस-आस्वाद से रहित जो जीव है वह बहिरात्मा कहलाता है । वह बहिरात्मा आस्रव, बंध और पाप इन तीन पदार्थों का कर्त्ता है । किसी समय जब कषाय और मिथ्यात्व का उदय मन्द हो, तब आगामी भोगों की
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