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गाथा २६ ] . द्वितीयोऽधिकारः
[८५ आसवदि जेण कम्मं परिणामणप्पणो स विएणेो। भावासवो जिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि ॥ २६ ॥ आस्रवति येन कर्म परिणामेन आत्मनः सः विज्ञेयः। भावास्रवः जिनोक्तः कास्रवणं परः भवति ॥ २६ ॥
व्याख्या-"प्रासवदि जेण कम्मं परिणामणप्पणो स विएणेश्रो भावासवो" आस्रवति कर्म येन परिणामेनात्मनः स विज्ञेयो भावासवः । कर्मास्रवनिमूलनसमर्थशुद्धात्मभावनाप्रतिपक्षभूतेन येन परिणामेनास्रवति कर्मः कस्यात्मनः ? स्वस्य; स परिणामो भावासूबो विज्ञेयः । स च कथंभूतः १ "जिणुत्तो" जिनेन वीतरागसर्व शेनोक्तः । “कम्मासवणं परो होदि" कर्मासूवर्ण परो भवति, ज्ञानावरपादिद्रव्यकर्मणामासूवणमागमनं परः । पर इंति कोऽर्थः १ भावासूवादन्यो भिन्नो । भावासूवनिमितेन तैलमृक्षितानां धूलिसमागम इव द्रव्यासूवो भवतीति । ननु "आसूवति येन कर्म" तेनैव पदेन द्रव्यासवो लब्धः, पुनरपि कर्मासूवणं परो भवतीति द्रव्यासूवव्याख्यानं किमर्थमिति यदुक्त त्वया ? तन्न । येन परि
गाथार्थः- आत्मा के जिस परिणाम से कर्म का आस्रव होता है उसे श्री जिनेन्द्र द्वारा कहा हुआ भावानव जानना चाहिए । और जो (ज्ञानावरणादि रूप) कर्मों का आस्रव है सो द्रव्यास्रव है ॥ २६ ॥
वृत्त्यर्थ :--'आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विणणेओ भावासवो' आत्मा के जिस परिणाम से कर्म का आस्रव हो, वह भावात्रव जानना चाहिए। कर्मास्रव के नाश करने में समर्थ, ऐसी शुद्ध आत्मभावना से विरोधी जिस परिणाम मे आत्मा के कर्म का आस्रव होता है; किस आत्मा के ? अपनी आत्मा के उस परिणाम को भावास्रव जानना चाहिये । वह भावानव कैसा है ? 'जिगुत्तो' जिनेन्द्र वीतराग सर्वज्ञदेव द्वारा कहा हुआ है। 'कम्मासवणं परो होदि' कर्मों का जो आगमन है वह 'पर' होता है अर्थात् ज्ञानावरण
आदि द्रव्य कर्मों का जो आगमन है वह 'पर' द्रव्यास्रव है। 'पर' शब्द का क्या अर्थ है ? 'भावास्रव से अन्य या भिन्न' । जैसे तेल से चुपड़े पदार्थों पर धूल का समागम होता है, उसी तरह भावास्रव के कारण जीव के द्रव्यास्रव होता है। यहाँ कोई शंका करता है'आसवदि जेण कम्म' (जिससे कर्म का आस्रव होता है) इसी पद से ही द्रव्यासव आ गया फिर 'कम्मासवणं परो होदि' (कर्मासूव इससे भिन्न होता है) इस पद से द्रव्यासव का व्याख्यान किस लिये किया ? समाधान तुम्हारी यह शंका ठीक नहीं। क्योंकि 'जिस परिणाम से क्या होता है ? कर्म का आसूव होता है' यह जो कथन है, उससे परिणाम का
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