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गाथा ३४ ] द्वितीयोऽधिकारः
__ [६७ वत्केवलज्ञानांश रूपं भवति तर्हि तेनैकदेशेनापि लोकालोकप्रत्यक्षतां प्रामोति, न च तथा दृश्यते । किन्तु प्रचुरमेघाच्छादितादित्यविम्बवन्निविडलोचनपटलवद्वा स्तोकं प्रकाशयतीत्यर्थः।
अथ क्षयोपशमलक्षणं कथ्यते सर्व प्रकारेणात्मगुणप्रच्छादिकाः कर्मशक्तयः सर्वघातिस्पर्द्धकानि भण्यन्ते, विवक्षितैकदेशेनात्मगुणप्रच्छादिकाः शक्तयो देशघातिस्पर्द्ध कानि भण्यन्ते, सर्वघातिस्पर्द्ध कानामुदयाभाव एव क्षयस्तेषामेवास्तित्वमुपशम उच्यते सर्वघात्युदयाभावलक्षणक्षयेण सहित उपशमः तेषामेकदेशघातिस्पर्द्धकानामुदयश्चेति समुदायेन क्षयोपशमो भएयते । क्षयोपशमे भवः क्षायोपशमिको भावः । अथवा देशघातिस्पर्द्धकोदये सति जीव एकदेशेन ज्ञानादिगुणं लभते यत्र स क्षायोपशमिको भावः। तेन किं सिद्ध? पूर्वोक्तसूक्ष्मनिगोदजीवे ज्ञानावरणीयदेशघातिस्पर्द्धकोदये सत्येकदेशेन ज्ञानगुणं लभ्यते तेन कारेणन तत् तायोपशमिकं ज्ञानं, न च क्षायिक, कस्मादेकदेशोदयसद्भावादिति । अयमत्रार्थःयद्यपि पूर्वोक्तं शुद्धोपयोगलक्षणं क्षायोपशमिकं ज्ञानं मुक्तिकारणं भवति तथापि
का वह ज्ञान क्षायोपशमिक ही है। यदि नेत्रपटल के एक देश में निरावरण के समान वह ज्ञान केवलज्ञान का अंशरूप हो तो उस एक देश ( अंश) से भी लोकालोक प्रत्यक्ष हो जाये; परन्तु ऐसा देखा नहीं जाता; किन्तु अधिक बादलों से आच्छादित सूर्य-बिम्ब के समान या निबिड़ नेत्रपटल के समान, वह निगोदिया का ज्ञान सबसे थोड़ा जानता है, यह तात्पर्य है ।
अब क्षयोपशम का लक्षण कहते हैं-सब प्रकार से आत्मा के गुणों को आच्छादन करने वाली जो कर्मों की शक्तियाँ हैं उनको 'सर्वघातिस्पर्द्धक' कहते हैं। और विवक्षित एक देश से जो आत्मा के गुणों को आच्छादन करने वाली कर्मशक्तियाँ हैं वे 'देशघातिस्पर्द्धक' कहलाती हैं । सर्वघातिस्पर्द्धकों के उदय का जो अभाव है सो ही क्षय है और उन्हीं सर्वघातिस्पद्धकों का जो अस्तित्व है वह उपशम कहलाता है। सर्वघातिस्पर्द्धकों के उदय का अभावरूप क्षय सहित उपशम और उन (कर्मों) के एक देश घातिस्पद्धकों का उदय होना, सो ऐसे तीन प्रकार के समुदाय से क्षयोपशम कहा जाता है । क्षयोपशम में जो भाव हो, वह क्षायोपशमिक भाव है । अथवा देशघातिस्पर्द्धकों के उदय के होते हुए , जीव जो एक देश ज्ञानादि गुण प्राप्त करता है वह क्षायोपशमिक भाव है। इससे क्या सिद्ध हुआ ? पूर्वोक्त सूक्ष्म निगोद जीव में ज्ञानावरण कर्म के देशघातिस्पद्धकों का उदय होने के कारण एकदेश से ज्ञान गुण होता है इस कारण वह ज्ञान क्षायोपशमिक है, क्षायिक नहीं; क्योंकि, वहाँ कर्म के एक देश उदय का सद्भाव है ।
यहाँ सारांश यह है-यद्यपि पूर्वोक्त शुद्धोपयोग लक्षण-वाला क्षायोपशमिक ज्ञान -
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