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वृहद्रव्यसंग्रह
[ गाथा ३५
धसुखाद्यनन्तगुणरत्नपूर्णमुक्तिवेलापत्तनं प्राप्नोतीति । एवमात्रवगतदोषानुचिन्तन
मात्रवानुप्रेक्षा ज्ञातव्येति । ७ ।
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अथ संवरानुप्रेक्षा कथ्यते - यथा तदेव जलपात्रं छिद्रस्य कम्पने सति जलप्रवेशाभावे निर्विघ्नेन वेलापत्तनं प्राप्नोति तथा जीवजलपात्रं निजशुद्धात्मसंवित्ति बलेन इन्द्रियाद्यासूवच्छिद्राणां झम्पने सति कर्मजलप्रवेशाभावे निर्विघ्नेन केवलज्ञानाद्यनन्त गुणरत्नपूर्णमुक्तिवेलापत्तनं प्राप्नोतीति । एवं संवरगतगुणानुचिन्तनं संवरानुप्रेक्षा ज्ञातव्या ॥ ८ ॥
अथ निर्जरानुप्रेक्षा प्रतिपादयति । यथा कोप्यजीर्णदोषेण मलसञ्चये जाते सत्याहारं त्यक्त्वा किमपि हरीतक्यादिकं मलपाचकमग्निदीपकं चौषधं गृह्णाति । तेन च मलपाकेन मलानां पातने गले निर्जरणे सति सुखी भवति । तथायं भव्यजीवोऽप्यजीर्णजनकाहारस्थानीय मिथ्यात्वरागाद्यज्ञानभावेन कर्ममल
ये सति मिथ्यात्वरागादिकं त्यक्त्वा परमौषधस्थानीयं जीवितमरणलाभालाभसुखदुःखादिसमभावनाप्रतिपादकं कर्ममलपाचकं शुद्धध्यानाम्निदीपकं च जिन
स्वरूप वेलापत्तन (संसार - समुद्र के किनारे का नगर ) को यह जीव नहीं पहुँच पाता इत्यादि प्रकार से आस्रव दोषों का विचार करना आस्वानुप्रेक्षा है ॥ ७ ॥
अब संवर अनुप्रेक्षा कहते हैं । वही समुद्र का जहाज अपने छेदों के बन्द हो जाने सेजल के न घुसने पर निर्विघ्न वेलापत्तन को प्राप्त हो जाता है; उसी प्रकार जीवरूपी जहाज अपने शुद्ध श्रात्मज्ञान के बल से इन्द्रिय आदि आस्रव रूप छिद्रों के मुँद जाने पर कर्म रूप जल न घुस सकने से, केवलज्ञान आदि अनन्तगुण रत्नों से पूर्ण मुक्ति रूप वेलापत्तन को निर्विघ्न प्राप्त हो जाता है। ऐसे संवर के गुणों के चितवन रूप संवर अनुप्रेक्षा जाननी चाहिए । ८ ।
निर्जरानुप्रेक्षा का प्रतिपादन करते हैं- जैसे किसी मनुष्य के अजीर्ण होने से पेट में मल का जमाव हो जाने पर, वह मनुष्य आहार को छोड़कर मल को पचाने वाले तथा जठराग्नि को तीव्र करने वाले हरड़ आदि औषध को ग्रहरण करता है । जब उस औषध सेमल पक जाता है, गल जाता है अथवा पेट से बाहर निकल जाता है तब वह मनुष्य सुखी होता है । उसी प्रकार यह भव्य जीव भी अजीर्ण को उत्पन्न करने वाले आहार के स्थानभूत मिध्यात्व, रागादि अज्ञान भावों से कर्म रूपी मल का संचय होने पर मिथ्यात्व, राग आदि छोड़कर, जीवन-मरण में व लाभ - अलाभ में और सुख-दुःख आदि में समभाव को उत्पन्न करने वाला, कर्ममल को पकाने वाला तथा शुद्ध ध्यान- अग्नि को प्रज्वलित
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