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गाथा ३५ ]
द्वितीयोऽधिकारः
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पञ्चम्यां पुनरुपरितन – त्रिभागे तीव्रोष्ण दुःखमधोभागे तीव्र - शीत- दुःखं, पष्ठीं सप्तम्योरतिशीतोत्पन्नदुःखमनुभवन्ति । तथैव छेदनभेदनक्रकच विदारणयंत्रपीडनशूला रोहणा दितीव्र दुःखं सहते तथाचोक्तं - "च्छिणिमीलणमेत्त णत्थि सुहं दुःखमेव अणुबद्धं । गिरये रयियाणं अहोणिसं पञ्चमागणं । १ ।” प्रथमपृथिवीत्रयपर्यंतमासुरोदीरितं चेति । एवं ज्ञात्वा नारकदुःखविनाशार्थं भेदाभेदरत्नत्रयभावना कर्तव्या । संक्षेपेणाधोलोकव्याख्यानं ज्ञातव्यम् ।
अतः परं तिर्यक्लोकः कथ्यते – जम्बूद्वीपादिशुभनामानो द्वीपाः लवणो दादिशुभनामानः समुद्राव द्विगुण द्विगुणविस्तारेण पूर्वं पूर्व परिवेष्टन्य वृत्ताकाराः स्वयम्भूरमणपर्यन्तास्तिर्यग् विस्तारेण विस्तीर्णास्तिष्ठन्ति यतस्तेन कारणेन तिर्यग् लोको भएयते, मध्यलोकाश्च । तद्यथा - तेषु सार्द्धवृती योद्धार सागरोपमलोमच्छेदप्रमितेष्वसंख्यातद्वीपसमुद्र ेषु मध्ये जम्बूद्वीपस्तिष्ठति । स च जम्बूवृक्षोपलक्षितो मध्यभागस्थितमेरुपर्वतसहितो वृत्ताकारलक्षयोजन प्रमाणस्तद्विगुणविष्कम्भेण यो
उपार्जन किया है, उसके उदय से वे नरक में उत्पन्न होते हैं। वहां पहले की चार पृथिवियों में ती गर्मी का दुःख और पाँचवीं पृथिवी के ऊपरी तीन चौथाई भाग में तीव्र उष्णता का दुख और नीचे के एक चौथाई भाग में तीव्र शीत का दुःख तथा छठी और सातवीं पृथिवी में अत्यन्त शीत के दुःख का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार छेदने, भेदने, करोती से चीरने, घानी में पेरने और शूली पर चढ़ाने आदिरूप तीव्र दुःख सहन करते हैं । सो ही कहा है कि 'नरक में रात-दिन दुख - रूप अग्नि में पकते हुए नारकी जीवों को नेत्रों के टिमकार मात्र भी सुख नहीं है, किन्तु सदा दुःख ही लगा रहता है । १ । पहली तीन पृथिवियों तक, असुरकुमार देवों द्वारा उत्पन्न किये हुए दुःख को भी सहते हैं । ऐसा जान कर, नरक-सम्बन्धी दुःख के नाश के लिये भेद तथा अभेद रूप रत्नत्रय की भावना करनी चाहिये । इस प्रकार संक्षेप से अधोलोक का व्याख्यान जानना चाहिये ।
इसके अनन्तर तिर्यग् लोक का वर्णन करते हैं। अपने दूने - दूने विस्तार से पूर्व - पूर्व द्वीप को समुद्र और समुद्र को द्वीप इस क्रम से बेढ़ करके, गोल आकार वाले जंबू द्वीप आदि शुभ नामों वाले द्वीप और लवणोदधि आदि शुभ नामों वाले समुद्र; स्वयंभूरमण समुद्र तक तिर्यग् विस्तार से फैले हुए हैं । इस कारण इसको तिर्यग लोक या मध्य लोक भी कहते हैं । वह इस प्रकार है— साढ़े तीन उद्धार सागर प्रमाण लोमों ( बालों ) के टुकड़ों के बराबर जो असंख्यात द्वीप समुद्र हैं; उनके बीच में जंबू द्वीप है; वह जंबू (जामन) के वृक्ष से चिन्हित तथा मध्य भाग में स्थित सुमेरु पर्वत से सहित है; गोलाकार एक लाख योजन लम्बा चौड़ा है । बाह्य भाग में अपने से दूने विस्तार वाले दो लाख योजन प्रमाण गोलाकार लवण समुद्र से वेष्टित ( बेढ़ा हुआ ) है । वह लवण - समुद्र भी बाह्य भाग में
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