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वृहद्रव्य संग्रहः
[ गाथा २८
व्याख्या- 'आसव' निरासुवस्वसंवित्तिविलक्षणशुभाशुभ परिणामेन शुभा - शुभकर्मागमनमासूवः | 'बंधण' गंधातीतशुद्धात्मतत्वोपलम्भभावनाच्युतजीवस्य कर्मप्रदेशैः सह संश्लेषो बन्धः । ' संवर' कर्मासूव निरोधसमर्थस्वसंवित्ति परिणतजीवस्य शुभाशुभकर्मागमनसंवरणं संवरः । 'णिज्जर' शुद्धोपयोगभावना सामर्थ्येन नीरसीभूत कर्म पुद्गलानामेकदेशगलनं निर्जरा । 'मोक्खो' जीवपुद्गल संश्लेषरूपबन्धस्य विघटने समर्थः स्वशुद्धात्मोपलब्धिपरिणामो मोक्ष इति । 'सपुराणपावा जे ' पुण्यपापसहिता ये, 'ते वि समासेण पभणामो' यथा जीवाजीवपदार्थों व्याख्यातौ पूर्व तथा तानप्यासूवादिपदार्थान् समासेण संक्षेपेण प्रभणामो वयं ते च कथंभूताः १ “जीवाजीवविसेसा" जीवाजीव विशेषाः । चैतन्यभावरूपा जीवस्य विशेषाः । चैतन्याभावरूपा अजीवस्य विशेषाः । विशेषा इत्यस्य कोऽर्थः ? पर्यायाः । चैतन्याः अशुद्धपरिणामा जीवस्य अचेतना: कर्मपुद्गलपर्याया अजीवस्येत्यर्थः । एवमधिकारसूत्रगाथा गता ॥ २८ ॥
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अथ गाथायेणासूवव्याख्यानं क्रियते । तत्रादौ भावासूबद्रव्यासूवस्वरूपं सूचयति :
वृत्त्यर्थ :–'आसव' आस्रव रहित निज आत्मानुभव से विलक्षण जो शुभ तथा अशुभ परिणाम • उससे जो शुभ और अशुभ कर्मों का आगमन है सो आस्रव है । 'बन्ध' बन्धरहित शुद्ध आत्मोपलब्धि रूप भावना से छूटे हुए जीव का जो कर्म के प्रदेशों के साथ परस्पर मेल है, सो बन्ध है । 'संवर' कर्म - आस्रव को रोकने में समर्थ स्वानुभव में परिणत जीव के जो शुभ तथा अशुभ कर्मों के आने का निरोध है, वह संवर है । 'णिज्जर' शुद्धोपयोग की भावना के बल से शक्तिहीन हुए कर्मपुद्गलों के एक देश गलने को निर्जरा कहते हैं । 'मोक्खो' जीव, पुद्गल के बन्ध को नाश करने में समर्थ निज शुद्ध आत्मा की उपलब्धि रूप परिणाम है, वह मोक्ष है । 'सपुरंगपावा जे' पुण्य, पाप सहित जो आस्रव आदि पदार्थ हैं, 'ते वि समासेण पभरणामो' उनको भी, जैसे पहले जीव, अजीव कहे हैं, उसी प्रकार संक्षेप से कहते हैं । वे कैसे हैं ? 'जीवाजीवविसेसा' जीव तथा अजीव के विशेष (पर्याय) हैं । चैतन्यभाव रूप जीव की पर्याय हैं और चैतन्यरहित अजीव की पर्याय हैं । 'विशेष' का क्या अर्थ है ? 'विशेष' का अर्थ पर्याय है । चैतन्य रूप जो शुद्ध परिणाम हैं वे जीव के विशेष हैं और जो अचेतनकर्म पुद्गलों की पर्याय हैं वे अजीव के विशेष हैं । इस प्रकार अधिकार सूत्र गाथा समाप्त हुई ॥ २८ ॥
अब तीन गाथाओं से आस्रव पदार्थ का वर्णन करते हैं, उसमें प्रथम ही भावास्रव तथा द्रव्यास्रव के स्वरूप की सूचना करते हैं:
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