________________
गाथा १६ ] वृहद्रव्यसंग्रहः
[५० रूपादिचतुष्टयमतीन्द्रियं, यथा रागादिस्नेहगुणेन कर्मबन्धावस्थायां ज्ञानादिचतुष्टयस्याशुद्धत्वं तथा स्निग्धरूक्षत्वगुणेन द्वन्यणुकादिबंधावस्थायां रूपादिचतुष्टयस्याशुद्धत्वं, यथा निःस्नेहनिजपरमात्मभावनाबलेन रागादिस्निग्धत्वविनाशे सत्यनंतचतुष्टयस्य शुद्धत्वं तथा जघन्यगुणानां बन्धो न भवतीति वचनात्परमाणुद्रव्ये स्निग्धरूक्षत्वगुणस्य जघन्यत्वे सति रूपादिचतुष्टयस्य शुद्धत्वमवबोद्धव्यमित्यभिप्रायः ॥१५॥ अथ पुद्गलद्रव्यस्य विभावव्यजनपर्यायान्प्रतिपादयतिः
सदो बंधो सुहुमो थूलो संठाणभेदतमछाया । उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्यस्स पज्जाया ॥१६॥ शब्दः बन्धः सूक्ष्मः स्थूलः संस्थानभेदतमश्छायाः ।
उद्योतातपसहिताः पुद्गलद्रव्यस्य पर्यायाः ॥ १६ ॥ - व्याख्या-शब्दबन्धसौम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतसहिताः पद्गलद्रव्यस्य पर्याया भवन्ति । अथ विस्तरः-भाषात्मकोऽभाषात्मकश्च द्विविधः शब्दः । तत्राक्षरानक्षरात्मकभेदेन भाषात्मको द्विधा भवति । तत्राप्यक्षरात्मकः
-
परमाण में रूप आदि चतुष्टय अतीन्द्रिय हैं। जिस तरह राग आदि स्नेह गुण से कर्मबन्ध की दशा में ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य इन चारों गुणों की अशुद्धता है; उसी तरह स्निग्ध रूक्षत्व गुण से द्वि-अणुक आदि बंध दशा में रूप आदि चारों गुणों की अशुद्धता है । जैसे स्नेहरहित निज परमात्मा की भावना के बल से राग आदि स्निग्धता का विनाश हो जाने पर अनन्त चतुष्टय की शुद्धता है; उसी तरह “जघन्य गुणों का बन्ध नहीं होता है" इस वचन के अनुसार परमाण में स्निग्ध रूक्षत्व गुण की जघन्यता होने पर रूप आदि चारों गुणों की शुद्धता समझनी चाहिए, ऐसा अभिप्राय है ॥ १५ ॥
अब पुद्गल द्रव्य की विभाव व्यंजन पर्यायों को वर्णन करते हैं
गाथार्थः-शब्द; बन्ध; सूक्ष्म; स्थूल; संस्थान; भेद; तम; छाया; उद्योत और आतप सहित सब पुद्गल द्रव्य की पर्याय हैं ॥ १६ ॥
वृत्त्यर्थः-शब्द; बन्ध; सूक्ष्मता; स्थूलता; संस्थान; भेद; तम; छाया आतप और उद्योत इन सहित पुद्गल द्रव्य की पर्याय होती हैं । अब इसको विस्तार से बतलाते हैं-भाषात्मक और अभाषात्मक ऐसे शब्द दो तरह का है। उनमें भाषात्मक शब्द अक्षरात्मक तथा अन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org