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गाथा २५ ]
प्रथमाधिकारः
भवन्ति संख्याः जीवे धर्माधर्मयांः अनन्ताः श्राकाशे ।
मूर्त्ते त्रिविधाः प्रदेशाः कालस्य एकः न तेन सः कायः ॥ २५ ॥
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व्याख्या - "होंति असंखा जीवे धम्माधम्मे" भवन्ति लोकाकाशप्रमितासंख्येयप्रदेशाः प्रदीपवदुपसंहारविस्तारयुक्तेऽप्येकजीवे नित्यं स्वभावविस्तीर्णयोधर्माधर्मयोरपि । "अत आयासे" अनन्तप्रदेशा आकाशे भवन्ति । “मुते तिविह पदेसा" मूर्चे पुद्गलद्रव्ये संख्याता संख्यातानन्ताणूनां पिण्डा: स्कन्धास्त एव त्रिविधाः प्रदेशा भण्यन्ते, न च क्षेत्र प्रदेशाः । कस्मात् ? पुद्गलस्यानन्तप्रदेशक्षेत्रे श्रवस्थानाभावादिति । “कालस्सेगो" कालापुद्रव्यस्यैक एव प्रदेशः । " ण ते सो काओ" तेन कारणेन स कायो न भवति । कालस्यैकप्रदेशत्वविषये युक्ति प्रदर्शयति । तद्यथा — किञ्चिदून चरमशरीरप्रमाणस्य सिद्धत्व पर्यायस्योपादानकारणभूतं शुद्धात्मद्रव्यं तत्पर्यायप्रमाणमेव । यथा वा मनुष्यदेवादिपर्यायोपादानकारणभूतं संसारिजीवद्रव्यं तत्पर्याय प्रमाणमेव, तथा कालद्रव्यमपि समयरूपस्य कालपर्यायस्य विभागेनोपादानकारणभूतमविभाग्येक प्रदेश एव भवति । अथवा
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गाथार्थ :- जीव, धर्म तथा अधर्म द्रव्य में असंख्यात प्रदेश हैं और आकाश में अनन्त हैं । पुद्गल संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त प्रदेशी तीनों प्रकार वाले हैं । के एक ही प्रदेश है इसलिये काल 'काय' नहीं है ।। २५ ।।
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वृत्त्यर्थ :- "होति असंखा जीवे धम्माधम्मे" दीपक के समान संकोच तथा विस्तार 'युक्त एक जीव में भी और सदा स्वभाव से फैले हुए धर्म, अधर्म द्रव्यों में भी लोकाकाश के बराबर असंख्यात प्रदेश होते हैं। 'अत आयासे" आकाश में अनन्त प्रदेश होते हैं । "मुत्ते तिविह पदेसा" मूर्त - पुद्गल द्रव्य में जो संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त परमागुओं के पिंड अर्थात् स्कन्ध हैं, वे ही तीन प्रकार के प्रदेश कहे जाते हैं; न कि क्षेत्र- प्रदेश तीन प्रकार के हैं। क्योंकि पुद्गल अनन्त प्रदेश वाले क्षेत्र में नहीं रहता । " कालस्से गो" कालद्रव्य का एक ही प्रदेश है । " तेण सो काओ” इसी कारण कालद्रव्य 'काय' नहीं है।
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कालद्रव्य के एक प्रदेशी होने में युक्ति बतलाते हैं। यथा- - जैसे अन्तिम शरीर से कुछ कम प्रमाण के धारक सिद्धत्व पर्याय का उपादान कारण भूत जो शुद्ध आत्म- द्रव्य है वह सिद्धत्व पर्याय के प्रमाण ही है । अथवा जैसे मनुष्य, देव आदि पर्यायों का उपादान कारण भूत जो संसारी जीव द्रव्य है वह उस मनुष्य, देव आदि पर्याय के प्रमाण ही है । उसी प्रकार कालद्रव्य भी समयरूप काल पर्याय के विभाग से उपादान रूप विभागी एक प्रदेश ही होता है । अथवा मंदगति से गमन करते हुए पुद्गल परमाणु के एक आकाश के
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