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वृहद्रव्यसंग्रह
[गाथा २५ नास्ति । कस्मादिति चेत् ? मुक्तात्मसत्तायां गुणपर्यायाणामुत्पादव्ययध्रौव्याणां चास्तित्वं सिद्धयति, गुणपर्यायोत्पादव्ययध्रौव्यसत्तायाश्च मुक्तात्मास्तित्वं सिद्धयतीति परस्परसाधितसिद्धत्वादिति । कायत्वं कथ्यते—बहुप्रदेशप्रचयं दृष्ट्वा यथा शरीरं कोयो भएयते तथानन्तज्ञानादिगुणाधारभूतानां लोकाकाशप्रमितासंख्येयशुद्धप्रदेशानां प्रचयं समूह संघातं मेलापकं दृष्ट्वा मुक्तात्मनि कायत्वं भण्यते । यथा शुद्धगुणपर्यायोत्पादव्ययध्रौव्यैः सह मुक्तात्मनः सत्तारूपेण निश्चयेनाभेदो दर्शितस्तथा यथासंभवं संसारिजीवेषु पुद्गलधर्माधर्माकाशकालेषु च द्रष्टव्यः । कालद्रव्यं विहाय कायत्वं चेति सूत्रार्थः ॥ २४ ॥
अथ कायत्वव्याख्याने पूर्व यत्प्रदेशास्तित्वं सूचितं तसय विशेषव्याख्यानं करोतीत्येका पातनिका, द्वितीया तु कस्य द्रव्यस्य कियन्तः प्रदेशा भवन्तीति प्रतिपादयति :
होति असंखा जीवे धम्माधम्मे अणंत प्रायासे । मुरो तिविह पदेसा कालस्सेगो ण तेण सो कारो॥ २५ ॥
द्रव्यपने से ध्रौव्य है । इस प्रकार पहले कहे लक्षण सहित गुण तथा पर्यायों से और उत्पाद, व्यय तथा ध्रौव्य के साथ मुक्त अवस्था में संज्ञा, लक्षण तथा प्रयोजन आदि का भेद होने पर भी सत्ता रूप से और प्रदेश रूप से भेद नहीं है । क्योंकि मुक्त जीवों की सत्ता होने पर गुण तथा पर्यायों की और उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य की सत्ता सिद्ध होती है, एवं गुण, पर्याय, उत्पाद, व्यय तथा ध्रौव्य की सत्ता से मुक्त आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है। इस तरह गुण पर्याय आदि से मुक्त आत्मा की और मुक्त-आत्मा से गुण पर्याय की परस्पर सत्ता सिद्ध होती है। अब इनके कायपना कहते हैं बहुत से प्रदेशों के समूह को देखकर जैसे शरीर को काय कहते हैं (जैसे शरीर में अधिक प्रदेश होने के कारण शरीर को काय कहते हैं) उसी प्रकार अनंतज्ञान आदि गुणों के आधारभूत जो लोकाकाश के बराबर असंख्यात शुद्ध प्रदेशों का समूह, संघात अथवा मेल को देखकर मुक्त जीव में भी कायत्व कहा जाता है । जैसे शुद्ध गुण, पर्यायों से तथा उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से सहित मुक्तआत्मा के निश्चयनय की अपेक्षा सत्ता रूप से अभेद बताया गया है, वैसे ही संसारी जीवों में तथा पुद्गल; धर्म; अधर्म; आकाश और काल द्रव्यों में भी यथासंभव परस्पर अभेद देख लेना चाहिये । कालद्रव्य को छोड़कर अन्य सब द्रव्यों के कायत्व रूप से भी अभेद है। यह गाथा का अभिप्राय है ॥ २४ ॥
अब कायत्व के व्याख्यान में जो पहले प्रदेशों का अस्तित्व सूचित किया है उसका विशेष व्याख्यान करते हैं यह तो अगली गाथा की एक भूमिका है; और किस द्रव्य के कितने प्रदेश होते हैं, दूसरी भूमिका यह प्रतिपादन करती है :
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