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गाथा २२ ]
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धारकाला द्रव्यत्वेन धौव्यमित्युत्पादव्यय धौव्यात्मककालद्रव्यसिद्धिः । लोकवहिभगेकाला द्रव्याभावात्कथमाकाशद्रव्यस्य परिणतिरिति चेत् ? अखण्डद्रव्यत्वा-देकदेशदण्डाह तकुम्भकारचक्रभ्रमणवत्, तथैवैकदेशमनोहरस्पर्शनेन्द्रियविषयानुभव सर्वाङ्गसुखवत्, लोकमध्यस्थित कालाणुद्रव्यधारणैकदेशेनापि सर्वत्र परिणमनं भवतीति कालद्रव्यं शेषद्रव्याणां परिणतेः सहकारिकारणं भवति । कालद्रव्यस्य किं सहकारिकारणमिति १ यथाकाशद्रव्यमशेषद्रव्याणामाधारः स्वस्यापि तथा कालद्रव्यमपि परेषां परिणति सहकारिकारणं स्वस्यापि । अथ मतं यथा कालद्रव्यं स्वस्योपादानकारणं परिणते: सहकारिकारणं च भवति तथा सर्वद्रव्याणि, कालद्रव्येण किं प्रयोजनमिति ? नैवम् ; यदि पृथग्भूतसहकारिकारणेन प्रयोजनं नास्ति तर्हि सर्वद्रव्याणां साधारणगतिस्थित्यवगाहनविषये धर्माधर्माकाशद्रव्यैरपि सहका
प्रथमाधिकारः
का उत्पाद है; वही बीते हुए समय की अपेक्षा विनाश है और उन वर्त्तमान तथा अतीत दोनों समय का आधारभूत कालद्रव्यत्व से धौव्य है । इस तरह उत्पाद; व्यय; धौव्य रूप काल द्रव्य की सिद्धि है ।
शंका :- "लोक के बाहरी भाग में कालाणु द्रव्य के अभाव से अलोकाकाश में परिणमन कैसे हो सकता है ?" इस शंका का उत्तर यह है - आकाश अखंड द्रव्य है इस लिये जैसे चाक के एक कोने में डन्डे की प्रेरणा से कुम्हार का सारा चाक घूमने लगता है; अथवा जैसे स्पर्शन इन्द्रिय के विषय का प्रिय अनुभव एक अंग में करने से समस्त शरीर में सुख का अनुभव होता है; उसी प्रकार लोक आकाश में स्थित जो कालाणु द्रव्य है वह आकाश के एक देश में स्थित है तो भी सर्व अखण्ड आकाश में परिणमन होता है; इसी प्रकार काल द्रव्य शेष सब द्रव्यों के परिणमन में सहकारी कारण है ।
शंका :- जैसे काल द्रव्य, जीव पुद्गल आदि द्रव्यों के परिणमन में सहकारी कारण है वैसे ही काल द्रव्य के परिणमन में सहकारी कारण कौन है ? उत्तर - जिस तरह आकाश द्रव्य शेष सब द्रव्यों का आधार है और अपना आधार भी आप ही है; इसी तरह कालद्रव्य भी अन्य सब द्रव्यों के परिणामन में सहकारी कारण है और अपने परिणमन में भी सहकारी कारण है ।
शंका :—जैसे कालद्रव्य अपना उपादान कारण है और अपने परिणमन का सहकारी कारण है; वैसे ही जीव आदि सब द्रव्य भी अपने उपादान कारण और अपने २ परिणमन के सहकारी कारण रहें । उन द्रव्यों के परिणमन में कालद्रव्य से क्या प्रयोजन है ? समाधानऐसा नहीं है क्योंकि, यदि अपने से भिन्न बहिरंग सहकारी कारण की आवश्यकता न हो तो सब द्रव्यों के साधारण गति; स्थिति; अवगाहन के लिये सहकारी कारणभूत जो धर्म; अधर्म; आकाश द्रव्य हैं उनकी भी कोई आवश्यकता नहीं रहेगी । विशेष :- काल का कार्य तो
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