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३० ] वृहद्रव्यसंग्रह
[गाथा १२ क्षणं नानाविकल्पजालरूपं मनो भण्यते, तेन सह ये वर्तन्ते ते समनस्काः संझिनः, तद्विपरीता अमनस्का असंज्ञिनः । “णेया" ज्ञेया ज्ञातव्याः। “पंचिंदिय" ते संज्ञिनस्तथैवासंज्ञिनश्च पञ्चेन्द्रियाः । एवं संस्यसंज्ञिपञ्चेन्द्रियास्तिर्यश्च एव, नारकमनुष्यदेवाः संज्ञिपञ्चेन्द्रिया एव । “णिम्मणा परे सव्वे" निर्मनस्काः पञ्चेन्द्रियात्सकाशात् परे सर्वे द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः । “बादरसुहमेइंदी" बादरसूक्ष्मा एकेन्द्रियास्तेऽपि यदष्टपत्रपद्माकारं द्रव्यमनस्तदाधारण शिक्षालापोपदेशादिगाहकं भावमनश्चेति तदुभयाभावादसंज्ञिन एव । “सव्वे पज्जत्त इदरा य" एवमुक्तप्रकारेण संझ्यसंज्ञिरूपेण पञ्चेन्द्रियद्वयं द्वित्रिचतुरिन्द्रियरूपेण विकलेन्द्रियत्रयं बादरसूक्ष्मरूपेणैकेन्द्रियद्वयं चेति सप्त भेदाः। “आहारसरीरिंदिय पज्जत्ती आणपाणभासमणो । चत्तारिपंचछप्पियएइंन्दियवियलसएिणसएणीणं । १ ।" इति गाथाकथितक्रमेण ते सर्वे प्रत्येकं स्वकीयस्वकीयपर्याप्तिसंभवात्सप्त पर्याप्ताः सप्तापर्याप्ताश्च भवन्ति । एवं चतुर्दशजीवसमासा ज्ञातव्यास्तेषां च "इंदियकायाऊणिय पुण्णापुरणेसु पुण्णगे आणा । वेइंदियादिपुराणे वचिमणो सएिण
द्रव्य उससे विलक्षण अनेक तरह के विकल्पजालरूप मन है, उस मन से सहित जीव को 'समनस्कसंज्ञी' कहते हैं। तथा मन से शून्य अमनस्क यानी असंज्ञी 'ऐया” जानने चाहिये । 'पंचिंदिया" पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी तथा असंज्ञी दोनों होते हैं। ऐसे संज्ञी तथा असंज्ञी ये दोनों पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च ही होते हैं । नारकी, मनुष्य और देव संज्ञीपंचेन्द्रिय ही होते हैं। "णिम्मणा परे सव्वे" पंचेन्द्रिय से भिन्न अन्य सब द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चारन्द्रिय जीव मन रहित असंज्ञी होते हैं। "बादरसुहमेइदी" बादर और सूक्ष्म जो एकेन्द्रिय जीव हैं, वे भी आठ पाखंडी के कमल के आकार जो द्रव्य मन और उस द्रव्य मन के अधार से शिक्षा, वचन, उपदेश आदि का ग्राहक भावमन, इन दोनों प्रकार के मन न होने से असंज्ञी ही हैं। “सव्ये पज्जत्त इदरा य” इस तरह उक्त प्रकार से संज्ञी और असंज्ञी दोनों पंचेन्द्रिय और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय रूप विकलत्रय तथा बादर सूक्ष्म दो तरह के एकेन्द्रिय ये सात भेद हुए। आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा तथा मन ये ६ पर्याप्तियां हैं। इनमें से एकेन्द्रिय जीव के आहार, शरीर, स्पर्शनेन्द्रिय तथा श्वासोच्छवास ये च.र पर्याप्तियां होती हैं। विकलेन्द्रिय (दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय) तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मन के बिना पांच पर्याप्तियां होती है और संज्ञी पंचेन्द्रिय के छहों पर्याप्तियां होती हैं।
इस गाथा में कहे हुए क्रम से वे जीव अपनी-अपनी पर्याप्तियों के पूर्ण होने से सातों पर्याप्त है और अपनी पर्याप्तियां पूरी न होने की दशा में सातों अपर्याप्त भी होते हैं। ऐसे चौदह जीव समास जानने चाहिये । 'इन्द्रिय, काय, आयु ये तीन प्राण, पर्याप्त और
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