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गाथा १३]
प्रथमाधिकारः यमार्गणा । २ । अशरीरात्मतत्त्वविसदृशी पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतित्रसकायभेदेन षड्भेदा कायमार्गणा । ३। निर्व्यापारशुद्धात्मपदार्थविलक्षणमनोवचनकाययोगभेदेन त्रिधा योगमार्गणा, अथवा विस्तरेण सत्यासत्योभयानुभयभेदेन चतुर्विधो मनोयोगो वचनयोगश्च, औदारिकौदारिकमिश्रवैक्रियिकवैक्रियिकमिश्राहारकाहारकमिश्रकार्मणकायभेदेन सप्तविधो काययोगश्चेति समुदायेन पञ्चदशविधा वा योगमार्गणा । ४ । वेदोदयोद्भवरागादिदोषरहितपरमात्मद्रव्याद्भिन्ना स्त्रीपुंनपुंसकभेदेन त्रिधा वेदमार्गणा । ५ । निष्कषायशुद्धात्मस्वभावप्रतिकूलक्रोधलोभमायामानभेदेन चतुर्विधा कषायमार्गणा, विस्तरेण कषायनोकषायभेदेन पञ्चविंशतिविधा वा ।६। मत्यादिसंज्ञापञ्चकं कुमत्याद्यज्ञानत्रयं चेत्यष्टविधा ज्ञानमार्गणा । ७ । सामायिकच्छेदोपस्थापनपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातभेदन चारित्रं पञ्चविधम् , संयमासंयमस्तथैवासंयमश्चेति प्रतिपक्षद्वयेन सह सप्तप्रकारा संयममार्गणा । ८ । चक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनभेदेन चतुर्विधा दर्शनमार्गणा । ६ । कषायोदयरञ्जित
इन्द्रियमार्गणा पाँच प्रकार की हैं । २। शरीर रहित श्रात्मतत्त्व से भिन्न पृथिवी; जल; अग्नि; वायु; वनस्पति और त्रस काय के भेद से कायमार्गणा छह तरह की होती है। ।३। व्यापार रहित शुद्ध आत्मतत्त्व से विलक्षण मनोयोग; वचनयोग तथा काययोग के भेद से योगमार्गणा तीन प्रकार की है अथवा विस्तार से सत्यमनोयोग; असत्यमनोयोग; उभयमनोयोग और अनुभयमनोयोग के भेद से चार प्रकार का मनोयोग है। ऐसे ही सत्य; असत्य; उभय; अनुभय इन चार भेदों से वचनयोग भी चार प्रकार का है एवं औदारिक;
औदारिकमिश्र; वैक्रियिक; वैक्रियिकमिश्र; आहारक; आहारकमिश्र और कार्मण ऐसे काययोग सात प्रकार का है। सब मिलकर योगमार्गणा १५ प्रकार की हुई। ४। वेद के उदय से उत्पन्न होने वाले राग.दिक दोषों से रहित जो परमात्मद्रव्य है उससे भिन्न स्त्रीवेद; पुवेद
और नपुसकवेद ऐसे तीन प्रकार की वेदमार्गणा है । ५ । कषाय रहित शुद्ध आत्मा के स्वभाव से प्रतिकूल क्रोध; मान; माया; लोभ भेदों से चार प्रकार की कषायमार्गणा है। विस्तार से अनन्तानुबन्धी; अप्रत्याख्यानावरण; प्रत्याख्यानावरण तथा संज्वलन भेद से १६ कषाय और हास्यादिक भेद से : नोकषाय ये सब मिलकर पञ्चीस प्रकार की कषायमार्गणा है। ६। मति; श्रुत; अवधि; मनःपर्यय और केवल; पांच ज्ञान तथा कुमति; कुश्रु त और विभंगावधि ये तीन अज्ञान इस तरह ८ प्रकार की ज्ञानमार्गणा है । ७ । सामायिक; छेदोपस्थापन; परिहारविशुद्धि; सूक्ष्मसांपराय और यथाख्यात ये पांच प्रकार का चारित्र और संयमासंयम तथा असंयम ये दो प्रतिपक्षी; ऐसे संयममार्गणा सात प्रकार की है। ८ । चक्षु; अचक्षु; अवधि और केवलदर्शन इन भेदों से दर्शनमार्गणा चार प्रकार की है। है । कषायों के उदय से रंगी हुई जो मन, वचन; काय की प्रवृत्ति है उससे भिन्न जो परमात्मद्रव्य है; उस परमात्मद्रव्य से विरोध करने वाली कृष्ण; नील; कापोत; पीत; पद्म और शुक्ल ऐसे ६
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