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दिग्नत के भीतर कुछ नियत समय तक आवश्यकतानुसार छोटे क्षेत्र की मर्यादा करना देशवत है। जिन क्रियानों से बिना प्रयोजन व्यर्थ में पाप-अर्जन होता है उन कार्यों का त्याग करना अनर्थ दण्ड व्रत है।
नियत समय तक पंच पापों का त्याग करके एक मासन से बैठकर या खड़े होकर सबसे रागद्वेष छोड़कर, आत्म चिन्तन करना बारह भावनाओं का चिन्तबन करना, जाप करना, सामायिक पाठ पढ़ना, सामायिक है।
अष्टमी और चतुर्दशी के दिन समस्त प्रारम्भ परिग्रह को छोड़कर खाद्य, स्वाद्य, लेह य, पेय इन चारों प्रकार के पाहार का त्याग करना तथा पहले और पीछे के दिन (सप्तमी, नवमी त्रयोदशी, पूर्णिमा) प्रोषध (एकाशन एक बार भोजन) करना प्रोषधोपवास है।
भोग्य (एक बार भोगने योग्य भोजन, लेल प्रादि पदार्थ) तथा उपभोग्य (अनेक बार भोगने योग्य पदार्थ वस्त्र, आभूपण, मकान, सवारी आदि) पदार्थों का अपनी आवश्यकता अनुसार परिमाण करके शेष अन्य सबका त्याग करना भोगोपभोग परिमाण व्रत है।
अपने यहाँ आने की तिथि (प्रतिपदा द्वितीया आदि) जिनकी कोई नियत नहीं होती, ऐसे मुनि, ऐलक, अल्लुक आदि अतिथि व्रती पुरुपों को भक्ति भाव से तथा दीन-दुःखी दरिद्रों को करुणा भाव से साधर्मो गृहस्थों को वात्सल्य भाव से, भोजन कराना, ज्ञान, दान, पौषध दान तथा अभय दान करना अतिथि संविभाग व्रत है । व्रतों का पालन करना व्रत प्रतिमा है।
सामायिक प्रतिमा निर्दोष (अतिचार सहित) प्रात:, दोपहर और सायंकाल कम से कम दो-दो घड़ी (२४ मिनट को एक घड़ी) तक नियम से सामायिक करना, सामायिक प्रतिमा है। सामायिक का मध्यम समय ४ घड़ी और उत्तम समय ६ घड़ी है।
रागद्वेष आदि विकार भाव न आने देकर सबमें समता (समान) भाव रखना सामायिक है । विषय भेद से उसे १ नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, ४ क्षेत्र, ५ काल, प्रौर ६ भाव, छ: भेद रूप माना गया है।
सामायिक करते समय किसी भी अच्छे नाम से राग न करना, बुरे नाम से द्वषन करना, दोनों में समभाव रहना नाम सामायिक है।
सामायिक के समय किसी सुन्दर चित्र मूर्ति ? स्त्री पुरुष के चित्र, मूर्ति, प्रतिमा आदि पर राग भाव चिन्तवन न करना असुन्दर चित्र मादि के लिए द्वष भाव हृदय में न माने देना, समता भाव रखना स्थापना सामायिक है।
इष्ट अनिष्ट चेतन अचेतन पदार्थों में द्वेष भावना तथा हर्ष भावना न लाकर सामायिक के समय समताभाव रखना द्रव्य सामायिक है।
सामायिक काल में शुभ, मनोहर, रमणीक क्षेत्रों (स्थानों) में राग भाव हृदय में न माने देना और अशुभ स्थानों से द्वेष भाव न आने देना, साम्यभाव रखना क्षेत्र सामायिक है।
शुभ अशुभ कालों के विषय में सामायिक के समय राग द्वेष भाव उत्पन्न न होने देना काल सामायिक है।
सामायिक के समय क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष काम, भय, शोक, आदि दुर्भाव उत्पन्न न होने देना भाव सामायिक है।
सामायिक करने के लिए प्रकार की शुद्धि का ध्यान रखना भी आवश्यक है। वे हैं क्षेत्र, काल, आसन, मन, वचन, काय और विनय ।
मन्दिर, धर्मशाला, बाग, पर्वत, नदीतट, बन आदि कोलाहल रहित तथा जीव-जन्तु आदि रहित स्थान होना क्षेत्र शुद्धि है।
तीन घड़ी रात्रि का अन्तिम समय और तीन धड़ी सूर्योदय समय प्रातःकाल, बारह बजे दिन से तीन बड़ी पहले और पोछे ६ घडी तक एवं तीन घड़ी दिन का अन्त समय में सामायिक के लिए उपयुक्त है यह काल शुद्धि है।
पद्यासन, खड्गासन, मादि दृढ़ ग्रासान में स्थिर होकर चटाई, तख्त शिला पर निश्चल रूप से सामायिक करना मासन
मन को दुर्भावना से शुद्ध रखना मन शुद्धि है।
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