Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम अपने समण-समणी वर्ग के माध्यम से जैन धर्म को विश्वधर्म बनाया। संवत् १६६७ को आप को स्वर्गवास वांगापुर सिटी में हुआ। दशम आचार्य महाप्रज्ञ जी :
आप आचार्य श्री तुलसी जी के आज्ञानुव्रती शिष्य हैं। आप सरस्वती पुत्र हैं। आप अपने गुरू के समान सरल, भव्य व्यक्तित्व के धनी, महान साहित्यकार, योगी, प्रेक्षा ध्यान के संस्थापक हैं। सैंकड़ों ग्रंथों का निर्माण आपके हाथों से हुआ है। आप जैन धर्म के विश्व स्तरीय विद्वान हैं। आप के बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाना है। आप आचार्य श्री तुलसी जी के साथ साए की तरह रहे। स्वाध्याय, चिंतन, मनन, ध्यान साहित्य, आगमों का तुलनात्मक अध्ययन आप की प्रमुख उपलब्धियां हैं। आप ने अपने गुरू का नाम इस ढंग से रौशन किया कि समझ ही नहीं आता कि कौन से कार्य आचार्य तुलसी ने किये हैं और कौन से कार्य आचार्य महाप्रज्ञ ने। अन महावक्ता, तपस्वी, अनुशासन प्रिय हैं। सब से बडी बात है आप का अपने गुरू के प्रति प्रेम। आप बहुभाषा विध, आगम मर्मज्ञ, इतिहासकार, सर्व धमों के जानकार हैं। आप वृद्ध अवस्था में भी तरूण जैसी स्फूर्ति के स्वामी हैं। समाज को आप से बहुत अपनाएं हैं। आप भविष्य दृष्टा, संघ के कायों के प्रति जागरूक हैं। इसी जागरूकता का प्रमाण है उनका उतराधिकारी का चयन। उन्होंने आचार्य पद संभालते ही जहां आचार्य तुलसी जी की क्रान्ति को आगे बढाते हुए बहुत से संस्थान मानव जाति को प्रदान किए वहां शिक्षा, सेवा, ध्यान शिविरों का क्रम शुरू किया। आप यात्रा कर सारे भारत का भ्रमण करते रहे हैं।
मैनें अपनी वात शुरू करने से पहले तेलपंथ का परिचय इस लिए दिया, ताकि मैं बता सकू कि मुझे सम्यक्त्व