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भावस्कन्ध निरूपण
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अनेक द्रव्य स्कन्ध ऐसा है, जिसका एक भाग अपचित - जीव रहित तथा एक भाग उपचित - जीव युक्त से मिलकर बनता है।
अनेक द्रव्य स्कन्ध का ऐसा स्वरूप है। यह ज्ञ शरीर - भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य स्कन्ध है। यह नोआगमतः द्रव्य स्कन्ध है। द्रव्य स्कन्ध का ऐसा विवेचन है।
विवेचन - सूत्र में प्रयुक्त अवचित - अपचित शब्द में स्थित 'अप' उपसर्ग निषेध या अभाव मूलक है। उवचिय या उपचित में 'उप' उपसर्ग सद्भावात्मक है। केश, नख आदि देह के भाग, जो जीव रहित हैं, अपचित हैं। शरीर के उदर, स्कन्ध, पृष्ठ आदि भाग जीव युक्त होने से उपचित हैं। अनेक द्रव्य स्कन्ध में जीव रहित और जीव सहित दोनों का सम्मिश्रण है।
यहाँ यह विशेष रूप से ज्ञातव्य है -
कृत्स्न स्कन्ध में समग्र जीव प्रदेश युक्त शरीरवयवों का ही ग्रहण होता है जबकि अनेक द्रव्य स्कन्ध में जीव रहित (बाल, नाखून आदि) और जीव सहित दोनों का ही समावेश है।
(५५)
भावस्कन्ध निरूपण से किं तं भावखंधे? भावखंधे दुवहे पण्णत्ते। तंजहा - आगमओ य १णोआगमओ य २। भावार्थ - भाव स्कन्ध किस प्रकार का है? भाव स्कन्ध आगमतः और नोआगमतः के रूप में दो प्रकार का बतलाया गया है।
(५६) से किं तं आगमओ भावखंधे? आगमओ भावखंधे जाणए उवउत्ते। सेत्तं आगमओ भावखंधे। शब्दार्थ - उवउत्ते - उपयोग पूर्वक, जाणए - ज्ञाता। भावार्थ - आगमतः भाव स्कन्ध किस प्रकार का है? स्कन्ध पद को उपयोग पूर्वक ज्ञाता - जानने वाला आगमतः भाव स्कन्ध है। यह आगमतः भाव स्कन्ध का निरूपण है।
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