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अनुयोगद्वार सूत्र
- गीत के वृत्त एवं भाषा समं अद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं। तिण्णि वित्तपयाराई, चउत्थं णोवलब्भइ॥१०॥ सक्कया पायया चेव, भणिईओ होंति दोण्णि वा। सरमंडलम्मि गिजंते, पसत्था इसिभासिया॥११॥
शब्दार्थ - वित्तपयाराई - वित्त प्रकार, चउत्थं - चौथा, णोवलब्भइ - प्राप्त नहीं होता, सक्कया - संस्कृत, पायया - प्राकृत, भणिइओ - भाषायें, सरमंडलम्मि :- स्वर मंडल में, पसत्था - उत्तम, इसिभासिया - ऋषिभाषित - ऋषियों द्वारा भाषित या आर्ष।
भावार्थ - गीत के वृत्त तीन प्रकार के होते हैं - १. सम - जिसमें छन्द के चारों चरण समान गण या मात्रा युक्त हों,
२. अर्द्ध सम - जिसके प्रथम-तृतीय एवं द्वितीय-चतुर्थ पद गण एवं मात्राओं की दृष्टि से . समान हो,
३. सर्वविषम - जिसके चारों चरण असमान या भिन्न-भिन्न हों। इन तीनों के अतिरिक्त चौथा भेद प्राप्त नहीं होता ॥१०॥
संस्कृत और प्राकृत - ये दोनों भाषाएं गीत के लिए अभिहित हुई हैं। ये स्वरमंडल में संगानोपयोगी हैं, उत्तम ऋषिभाषित - आर्ष हैं॥११॥
संगातृ-प्रकार केसी गायइ महुरं, केसी गायइ खरं च रुक्खं च। केसी गायइ चउरं, केसी य विलंबियं दुयं केसी॥१२॥ विस्सरं * पुण केरिसी?। गोरी गायइ महुरं, सामा गायइ खरं च रुक्खं च। काली गायइ चउरं, काणा य विलंबियं दुयं अंधा॥१३॥ विस्सरं पुण पिंगला। ०१-२ गाहाहिगपयाइमेयाई।
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