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अनुयोगद्वार सूत्र
गाहाओ - माणुम्माणपमाणजुत्ता (णय), लक्खणवंजणगुणेहिं उववेया।
उत्तम-कुलप्पसूया, उत्तमपुरिसा मुणेयव्वा॥१॥ होंति पुण अहियपुरिसा, अट्ठसयं अंगुलाण उव्विद्धा। छण्णउइ अहमपुरिसा, चउरुत्तर मज्झिमिल्ला उ॥२॥ हीणा वा अहिया वा, जे खलु सर-सत्त-सारपरिहीणा।
तं उत्तमपुरिसाणं, अवस्स पेसत्तणमुर्वेति॥३॥ शब्दार्थ - जया - यदा - जब, तया - तदा - उस काल में, अप्पणो - अपना, दुवालस- बारह, मुहं - मुख, लक्खणवंजण - लक्षण-व्यंजन - शंख, आदि शुभ शारीरिक चिह्न एवं मस्से, तिल आदि, पमाणजुत्ते - प्रमाणयुक्त, उववेया - उपपेत - युक्त, उत्तमकुलप्पसूया - उत्तमकुलप्रसूत - उत्तमकुलोत्पन्न, मुणेयव्वा - जानने योग्य, अहियपुरिसा - विशिष्ट गुण संपन्न पुरुष, अट्ठसयं - एक सौ आठ, उव्विद्धा - ऊँचे, छण्णउइ - छियानवें, अहमपुरिसा - अधम पुरुष, चउरुत्तर - एक सौ चार, मज्झिमिल्ला - मध्यम कोटि के, हीणा - हीन, अहिया - अधिक, सर-सत्त-सारपरिहीणा - स्वर, सत्त्व एवं क्षमता रहित, अवस्स - नियत रूप से, पेसत्तणमुवेंति - दासत्व प्राप्त करते हैं। . , ___ भावार्थ - आत्मांगुल का क्या स्वरूप है?
जिस काल में जो मनुष्य होते हैं, उनके अपने आकार के अनुसार जो उनके अंगुल होते हैं, उन्हें आत्मांगुल कहा जाता है। उनके अपने अंगुल से बारह अंगुल का एक मुख होता है। नौ मुख (१०८ अंगुल) की ऊँचाई का पुरुष समुचित प्रमाणयुक्त माना जाता है। द्रोणिक पुरुष (देह विस्तार) समुचित मान युक्त होता है। उसे देह का वजन अर्द्धभार परिमित होता है। ऐसा पुरुष उन्मानयुक्त होता है। ____ गाथाओं का अर्थ - मान, उन्मान, प्रमाण युक्त लक्षण, व्यंजन एवं गुण से संपन्न उत्तम कुलोत्पन्न को उत्तम पुरुष जानना चाहिए॥१॥
उत्कृष्ट गुण युक्त पुरुष १०८ अंगुल ऊँचे होते हैं। छियानवें अंगुल की ऊँचाई के पुरुष अधम कोटि के तथा एक सौ चार अंगुल प्रमाण के पुरुष मध्यम कोटि के होते हैं। जो समुचित मान-प्रमाण से हीन या अधिक होते हैं, वे स्वर, सत्त्व एवं सामर्थ्य से रहित होते हैं। वे नियत रूप से उत्तम पुरुषों के दास बनते हैं।
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