Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 487
________________ ४६२ अनुयोगद्वार सूत्र अक्रिय, उन्मार्ग और अनुपदेश (विपरीत उपदेश) और मिथ्यादर्शन आदि (का संग्रह) होता है। इसलिए स्वसमयवक्तव्यता ही होती है। न तो परसमयवक्तव्यता ही होती है और न स्वसमयपरसमय-वक्तव्यता होती है। इस प्रकार वक्तव्यता का निरूपण परिसमाप्त होता है। (१४६) अर्थाधिकार विवेचन से किं तं अत्थाहिगारे? अत्थाहिगारे - जो जस्स अज्झयणस्स अत्थाहिगारो, तंजहा - गाहा - सावज्जजोगविरई, उक्कित्तण गुणवओ य पडिवत्ती। . खलियस्स जिंदणा वण-तिगिच्छ गुणधारणा चेव॥१॥ सेत्तं अत्थाहिगारे। शब्दार्थ - गुणवओ - गुणवान्, पडिवत्ती - प्रतिपत्ति - यथार्थ मूल्यांकन, सम्मानसत्कार, वणतिगिच्छ - घावों का इलाज, गुणधारणा - गुणों का धारण। भावार्थ - अर्थाधिकार का क्या स्वरूप है? । अर्थाधिकार (आवश्यक सूत्र के) जिस अध्ययन का जो अध्ययन वर्णनीय होता है, उसका आख्यान करना अर्थाधिकार कहा जाता है। निम्नांकित गाथा में इसका उल्लेख है - गाथा - १. (प्रथम अध्ययन) सामायिक अध्ययन का अभिप्राय सावद्ययोगविरति - पापयुक्त मानसिक, वाचिक, कायिक प्रवृत्तियों से हटना है। २. चतुर्विंशतिस्तव नामक (द्वितीय) अध्ययन का अर्थ उत्कीर्तन - स्तुतिपरक है। ३. वंदना संज्ञक (तृतीय) अध्ययन का अर्थ - गुणी पुरुषों का यथार्थ मूल्यांकन या आदर सत्कार या वंदन, नमन करने से है। _____४. (चतुर्थ) प्रतिक्रमण अध्ययन में आचार में हुई स्खलनाओं, त्रुटियों या सावद्य कृत्यों की निन्दा करना है, उनके लिए खेदानुभूति करना है। ___५. (पंचम) कायोत्सर्ग अध्ययन व्रणचिकित्सा रूप कृति (विभावविरति स्वभावानुरति) से संबद्ध है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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