Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 490
________________ समवतार निरूपण ४६५ आयसमोयारे य १ तदुभयसमोयारे य २। चउसट्ठिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं बत्तीसियाए समोयरइ आयभावे य। बत्तीसिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं सोलसियाए समोयरइ आयभावे य। सोलसिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अट्ठभाइयाए समोयरइ आयभावे य। अट्ठभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं चउभाइयाए समोयरइ आयभावे य। चउभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अद्धमाणीए समोयरइ आयभावे य। अद्धमाणी आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं माणीए समोयरइ आयभावे य। सेत्तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसमोयारे। सेत्तं णोआगमओ दव्वसमोयारे। सेत्तं दव्वसमोयारे। भावार्थ - अथवा ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य समवतार दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है, यथा - आत्मसमवतार तथा तदुभयसमवतार। ___जैसे चतुषष्ठिका आत्मसमवतार की दृष्टि से आत्मभाव में समवसृत है। तदुभयसमवतार की अपेक्षा से वह द्वात्रिंशिका में भी समवसृत है और अपने आत्मभाव में तो है ही। द्वात्रिंशिका आत्मसमवतार की दृष्टि से आत्मभाव में और उभयसमवतार की दृष्टि से षोडशिका में भी विद्यमान है, अपने स्वरूप में तो है ही। षोडशिका आत्मसमवतार की अपेक्षा से आत्मभाव समवसृत है तथा तदुभयसमवतार की दृष्टि से अष्टभागिका में भी विद्यमान है, निजस्वरूप में तो है ही। अष्टभागिका आत्मसमवतार की दृष्टि से आत्मभाव में तथा तदुभयसमवतार की दृष्टि से चतुर्भागिका में समवसृत है, स्वयं के स्वरूप में तो है ही। चतुर्भागिका आत्मसमवतार की अपेक्षा से आत्मभाव में तथा तदुभय की दृष्टि से अर्द्धमानिका में अवस्थित है, निज स्वरूप में तो है ही। अर्द्धमानिका आत्मसमवतार की दृष्टि से आत्मभाव में तथा तदुभय समवतार की दृष्टि से मानिका में समवसृत है, आत्मभाव में तो उसकी अवस्थिति है ही। यह ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार का वर्णन है। यह नोआगमतः द्रव्यसमवतार का विवेचन है। इस प्रकार द्रव्यसमवतार का निरूपण परिसमाप्त होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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