Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 503
________________ ४७८ अनुयोगद्वार सूत्र से किं तं णोआगमओ भावज्झीणे? णोआगमओ भावज्झीणे - गाहा - जह दीवा दीवसयं पइप्पए दिप्पए य सो दीवो। दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवंति॥१॥ सेत्तं णोआगमओ भावज्झीणे। सेत्तं भावज्झीणे। सेत्तं अज्झीणे। शब्दार्थ - दीवा - दीपक, दीवसयं - सैंकड़ों दीपक, पइप्पए - प्रज्वलित कर-कर के, दिप्पए - दीप्त रहता है, दीवसमा - दीप के समान, आयरिया - आचार्य, दिप्पंति - दीप्त रहते हैं, दीवंति - दीप्त करते हैं। भावार्थ - नोआगमतः भाव-अक्षीण का क्या स्वरूप है? नोआगमतः भाव-अक्षीण इस प्रकार है - गाथा - जैसे एक दीपक सैंकड़ों दीपों को प्रज्वलित करके भी स्वयं दीप्त रहता है, प्रज्वलित रहता है, उसी तरह आचार्य दीपक के समान अन्य-शिष्यवृन्द को देदीप्यमान करते हुए स्वयं भी दीप्त रहते हैं। यह नोआगमतः भाव-अक्षीण का स्वरूप है। इस प्रकार भाव-अक्षीण का विवेचन परिसमाप्त होता है। आय - विवेचन से किं तं आए? आए चउव्विहे पण्णत्ते। तंजहा - णामाए १ ठवणाए २ दव्वाए ३ भावाए ४। भावार्थ - आय कितने प्रकार की होती है? यह नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के रूप में चार प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है। णामठवणाओ पुव्वं भणियाओ। भावार्थ - नाम और स्थापना आय का वर्णन पूर्व वर्णनानुसार ग्राह्य है। से किं तं दव्वाए? दव्वाए दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २। भावार्थ - द्रव्य आय के कितने भेद कहे गए हैं? द्रव्य आय के आगमतः और नोआगमतः के रूप में दो भेद परिज्ञापित किए गए हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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