Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 518
________________ अनुगम विवेचन ४६३ इयाणिं सुत्तालावगणिप्फण्णं णिक्खेवं इच्छावेइ, से य पत्तलक्खणे वि ण णिक्खिप्पड़। कम्हा? लाघवत्थं। अत्थि इओ तइए अणुओगदारे अणुगमे त्ति। तत्थ णिक्खत्ते इहं णिक्खित्ते भवइ। इई वा णिक्खित्ते तत्थ णिक्खित्ते भवइ। तम्हा इहं ण णिक्खिप्पड़, तहिं चेव णिक्खिप्पड़। से तं णिक्खेवे। शब्दार्थ - सुत्तालावगणिप्फण्णे - सूत्रालापक निष्पन्न, इयाणिं - इस समय, इच्छावेइइच्छा है, पत्तलक्खणे - प्राप्त लक्षण, णिक्खिप्पड़ - निक्षेप करते हैं, लाघवत्थं - लाघव हेतु, इओ - इससे, तइए - तीसरा। भावार्थ - सूत्रालापक निष्पन्न (निक्षेप) का क्या स्वरूप है? इस समय - नाम निष्पन्न निक्षेप का वर्णन करने के पश्चात् सूत्रालापक निष्पन्न निक्षेप प्राप्त लक्षण है। उसका लक्षण, विवेचन करने का अवसर है। किन्तु आगे अनुगम नामक तीसरे • अनुयोग द्वार में इसी का वर्णन किये जाने से लाघव - संक्षेप की दृष्टि से अभी निक्षेप नहीं किया जा रहा है क्योंकि यहाँ निक्षेप करने से वहाँ निक्षेप हो जाता है (पुनरावृत्ति हो जाती है)। इसलिए यहाँ निक्षेप नहीं किया जा रहा है, वहीं पर निक्षेप किया जायेगा। यह निक्षेप का स्वरूप है। (१५२) अनुगम विवेचन से किं तं अणुगमे? अणुगमे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - सुत्ताणुगमे य १ णिजुत्तिअणुगमे य २। भावार्थ - अनुगम कितने प्रकार का बतलाया गया है? यह सूत्रानुगम और नियुक्त्यनुगम के रूप में दो प्रकार का बतलाया गया है। से किं तं णिजुत्तिअणुगमे? णिज्जुत्तिअणुगमे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - णिक्खेवणिज्जुत्तिअणुगमे १ उवग्यायणिज्जुत्तिअणुगमे २ सुत्तप्फासियणिज्जुत्तिअणुगमे ३। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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