Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 522
________________ अनुगम विवेचन - उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम ४६७ १५. कहाँ - सामायिक कहाँ-कहाँ होती है? एतद्विषयक निर्देश करना, जैसे क्षेत्र, दिशा, काल, गति, भव्य, संज्ञी, उच्छ्वास, दृष्टि एवं आहारक इत्यादि का आश्रय लेकर कौनसी सामायिक कहाँ संभावित होती है, इसका कथन करना। १६. किसमें - सामायिक किस-किसमें होती है? । सम्यक्त्व सामायिक सर्वद्रव्यों में तथा सर्वपर्यायों में संभावित है, पर श्रुत तथा चारित्र सामायिक सर्वद्रव्यों में ही होती है, सर्वपर्यायों में नहीं पाई जाती। देशविरति सामायिक न तो सर्वद्रव्यों में और न सर्वपर्यायों में ही संभावित है। १७. कैसे - जीव सामायिक कैसे प्राप्त करता है? मनुष्य भव, आर्य क्षेत्र, जाति, कुल, रूप, आरोग्य, आयुष्य, बुद्धि, धर्मश्रवण, धर्मावधारण, श्रद्धा तथा संयम - ये लोक में दुर्लभ द्वादश स्थान प्राप्त होने पर जीव सामायिक को स्वायत्त करता है। .. १८. कियत् काल तक - सामायिक कियत्काल तक रह सकती है? दूसरे शब्दों में, सामायिक का कालमान कितना है? - सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक छियासठ सागरोपम है और चारित्र सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति देशोन पूर्व कोटि वर्षों की है। इन दोनों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। १६. कितने - विवक्षित समय में सामायिक में प्रतिपद्यमान, पूर्व प्रतिपन्न और पतित जीव कितने होते हैं? - सम्यक्त्व और देशविरति सामायिक के प्रतिपद्यमान जीव किसी एक काल में क्षेत्र पल्योपमअसंख्यात भाग प्रदेश प्रमाण होते हैं। इनमें भी देशविरति सामायिक के धारकों की अपेक्षा सम्यक्त्व सामायिक के धारक असंख्यात गुण अधिक हैं। ... जघन्य एक अथवा दो हो सकते हैं। श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश होते हैं, उत्कृष्टतः उतने ही प्रतिपद्यमान जीव एक काल में सम्यक्त्व - मिथ्याश्रुत भेदों से रहित सामान्य अक्षर श्रुतात्मक श्रुत सामायिक के धारक होते हैं। ____ जघन्यतः एक, दो होते हैं। सर्वविरति सामायिक के धारक उत्कृष्टतः सहस्र पृथक्त्व प्रमाण और जघन्यतः एक, दो होते हैं। सम्यक्त्व एवं देशविरति सामायिक के पूर्व प्रतिपन्न, एक समय में उत्कृष्टतः और जघन्यतः असंख्यात होते हैं। सम्यक् और मिथ्या विशेषण से रहित सामान्य अक्षरात्मक श्रुत सामायिक के www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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