Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 529
________________ ५०४ अनुयोगद्वार सूत्र निक्षेपों से निक्षिप्त करे। अर्थात् सूत्रालापकों को नाम, स्थापना आदि निक्षेपों में वह विभक्त करता है। इतने से वह कृतार्थ हो जाता है। तदनन्तर पदार्थ, पदविग्रह आदि जो और कार्य बचता है, उसे सूत्रस्पर्शिक नियुक्त्यनुगम सम्पन्न करता है। इसी प्रकार नैगम, संग्रह आदि जो सात नय हैं, उनका विषय भी प्रायः पदार्थ आदि का विचार करना है। वस्तुतः नैगमादि नय भी जब पदार्थ आदि को विषय करते हैं, तब सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति के अन्तर्गत हो जाते हैं। (१५३) नय-विश्लेषण से किं तं णए? सत्त मूलणया पण्णत्ता। तंजहा - णेगमे १ संगहे २ ववहारे ३ उज्जुसुए ४ सद्दे ५ समभिरूढे ६ एवंभूए । तत्थ गाहाओ - णेगेहिं माणेहि, मिणइत्ति णेगमस्स य णिरुत्ती। सेसाणं पि णयाणं, लक्खणमिणमो सुणह वोच्छं॥१॥ संगहियपिंडियत्थं, संगहवयणं समासओ बिंति। वच्चइ विणिच्छियत्थं, ववहारो सव्वदव्वेसु॥२॥ पच्चुप्पण्णग्गाही, उज्जुसुओ णयविही मुणेयव्वो। . इच्छइ विसेसियतरं, पच्चुप्पण्णं णओ सहो॥३॥ वत्थूओ संकमणं, होइ अवत्थूणए समभिरूढे। . वंजणअत्थतदुभयं, एवंभूओ विसेसेइ॥४॥ शब्दार्थ - णेगेहिं - अनेक द्वारा, माणेहिं - मानों - मापदण्डों द्वारा, मिणइत्ति - मापता है, इणमो - यह, सुणह - सुनो, वोच्छं - कहूँगा, संगहियपिंडियत्थं - सम्यक् प्रकार से गृहीत पिंडितार्थ, पच्चुप्पण्णग्गाही - प्रत्युत्पन्नग्राही - वर्तमान कालवर्ती पर्याय को ग्रहण करने वाला, णयविहि - नयविधि, सद्दो - शब्द, वत्थुओ - वस्तु का, संकमणो - संक्रमण, वंजण - व्यंजन - शब्द, अत्थ - अर्थ। । भावार्थ - नय का क्या स्वरूप है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 527 528 529 530 531 532 533 534