Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 524
________________ अनुगम विवेचन - सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम .. - सम्यक्त्व एवं सर्वविरति रूप चारित्र सामायिक युक्त जीव उत्कृष्टतः केवलि समुद्घात की अपेक्षा समस्त लोक का तथा जघन्यतः लोक के असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं। श्रुत और देशविरति सामायिक कतिपय जीव उत्कृष्टतः चवदह रज्जू प्रमाण लोक, सात रज्जू, पाँच, चार, तीन और दो रज्जू प्रमाण लोक का स्पर्श करते हैं। २५. निरुक्ति - "निश्चिताः उक्ति निरूक्ति: " निरुक्ति का अर्थ निश्चित उक्ति या कथन है। सामायिक की निरुक्ति क्या है? सम्यक् दृष्टि, अमोह, शोधि, सद्भाव, दर्शन, बोधि, अविपर्यय, सुदृष्टि इत्यादि सामायिक के नाम हैं । अर्थात् सामायिक का पूर्ण वर्णन ही सामायिक की निरूक्ति है। से किं तं सुत्तप्फासियणिज्जुत्तिअणुगमे ? यह उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम की व्याख्या है। अब सूत्र के प्रत्येक अवयव की विशेष व्याख्या करने रूप सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम का कथन करते हैं। ३. सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम - सुत्तप्फासियणिज्जुत्तिअणुगमे - सुत्तं उच्चारेयव्वं - अक्खलियं, अमिलियं, अवच्चामेलियं, पडिपुण्णं, पंडिपुण्णघोसं, कंठोट्ठविप्पमुक्कं, गुरुवायणोवगयं । तओ तत्थ णज्जिहिइ ससमयपयं वा परसमयपयं वा, बंधपयं वा मोक्खपयं वा, सामाइयपयं वा णोसामाइयपयं वा । तओ तम्मि उच्चारिए समाणे केसिं च णं भगवंताणं केइ अत्थाहिगारा अहिगया भवंति, केइ अत्थाहिगारा अणहिगया भवंति । तओ तेसिं अणहिगयाणं अहिगमणट्ठाए पयं पएणं वण्णइस्सामि संहिया य पयं चेव, पयत्थो पयविग्गहो । 1 गाहा Jain Education International ४६६ For Personal & Private Use Only - चालणा य पसिद्धी य, छव्विहं विद्धि लक्खणं ॥ १ ॥ सेतं सुत्तफासियणिज्जुत्तिअणुगमे से तं णिज्जुत्तिअणुगमे से तं अणुगमे । शब्दार्थ - सुत्तफासियणिज्जुत्तिअणुगमे - सूत्रस्पर्शकनिर्युक्नुगम, उच्चारेयव्वं - उच्चारण करना चाहिए, अक्खलियं अस्खलित, अमिलियं - अमिलित, अवच्चामेलियं अव्यत्याम्रेडित, कंठोट्ठविप्पमुक्कं - कंठोष्ठ विप्रमुक्त, गुरुवायणोवगयं - गुरुवाचनोपगत, www.jainelibrary.org

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