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अनुयोगद्वार सूत्र
णज्जिहिइ. - ज्ञात होता है, ससमयपयं - स्वसमयपद, तम्मि - उसके, केसिं - किन, अहिंगया। - अधिगत - प्राप्त, अणहिगयाणं - अनधिगत - अज्ञात, अहिगमणट्ठाए - अभिगमन के अर्थ में, वण्णइस्सामि - वर्णन करूंगा, संहिया - संहिता, पयविग्गहो - पदविग्रह, चालणा - संचालन करना, विद्धि - वृद्धि (सूत्र व्याख्या)।
भावार्थ - सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम क्या है?
सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम में अस्खलित, अमिलित, अव्यत्यानेडित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोष, कंठोष्ठविप्रमुक्त तथा गुरुवाचनोपगत रूप से सूत्र का उच्चारण करना चाहिए। इस प्रकार सूत्र का उच्चारण करने से यह अवगत होगा कि यह स्वसमय पद है या परसमय पद है या बंध पद है या मोक्षपद है या सामायिक पद है या नो सामायिक पद है।
इस प्रकार दोष रहित विधि से सूत्र का उच्चारण करने पर कितने ही साधु भगवंतों को कई एक अर्थाधिकार - अधिगत हो जाते हैं। तथा किन्हीं-किन्हीं को कतिपय अनधिगत रहते हैं। अर्थात् ज्ञात या प्राप्त नहीं होते। अतएव उन अनधिगत अर्थों का अधिगम - ज्ञान कराने के लिए एक-एक पद को कहूंगा - व्याख्या करूंगा। उसकी विधि इस प्रकार है -
गाथा - संहिता १. पद २. पदच्छेद ३. पदों का अर्थ ४. पद्र-विग्रह ५. चालना ६. प्रसिद्धि - इनके आधार पर छह प्रकार से व्याख्या करने की विधि है।
यह सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम का स्वरूप है। इस प्रकार नियुक्त्यनुगम तथा अनुगम की वक्तव्यता वर्णन पूर्ण होती है।
विवेचन - इस सूत्र में उच्चारण के संबंध में अस्खलित आदि के रूप में जिन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, उनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है -
१. अस्खलित - पाठ में स्खलन न करना, पाठ का यथा प्रवाह उच्चारण करना।
२. अमिलित - अक्षरों को परस्पर न मिलाते हुए उच्चारणीय पाठ के साथ किन्हीं दूसरे अक्षरों को न मिलाते हुए उच्चारण करना।
३. अव्यत्यामेडित - अन्य सूत्रों, शास्त्रों के पाठ को समानार्थक जानकर उच्चार्य पाठ के साथ मिला देना व्यत्यानेडित है। ऐसा न करना अव्यत्यानेडित है।
४. प्रतिपूर्ण - पाठ का पूर्ण रूप से उच्चारण करना, उसके किसी अंग को अनुच्चारित न रखना।
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