Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 508
________________ भाव - आय ४८३ से किं तं आगमओ भावाए? आगमओ भावाए जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावाए। भावार्थ - आगमतःभाव-आय का क्या स्वरूप है? आय पद के ज्ञाता और उपयोगयुक्त जीव आगमतः भाव आय है। से किं तं णोआगमओ भावाए? णोआगमओ भावाए दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - पसत्थे य १ अपसत्थे य २। भावार्थ - नोआगमतः भाव-आय कितने प्रकार की है? यह प्रशस्त और अप्रशस्त के रूप में दो प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है। से किं तं पसत्थे? पसत्थे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - णाणाए १ दंसणाए २ चरित्ताए ३। सेत्तं पसत्थे। भावार्थ - प्रशस्त (नोआगमतःभाव) आय कितने प्रकार की है? प्रशस्त आय-ज्ञान आय, दर्शन आय और चारित्र आय के रूप में तीन प्रकार की कही गई है। यह प्रशस्त आय का स्वरूप है। से किं तं अपसत्थे? . अपसत्थे चउव्विहे पण्णत्ते। तंजहा - कोहाए १माणाए २ मायाए ३ लोहाए ४। से तं अपसत्थे। से तं णोआगमओ भावाए। से तं भावाए। से तं आए। -- भावार्थ - अप्रशस्त (नोआगमतःभाव) आय कितने प्रकार की बतलाई गई है? यह चार प्रकार की बतलाई गई है - . १. क्रोध-आय २. मान-आय ३. माया-आय एवं ४. लोभ-आय। . यह अप्रशस्त आय का स्वरूप है। यह भाव आय के अन्तर्गत नोआगमतः भाव आय का स्वरूप है। इस प्रकार आय की वक्तव्यता पूर्ण होती है। विवेचन - उपर्युक्त सूत्रों में प्रशस्त और अप्रशस्त का प्रयोग हुआ है। शंस् धातु में क्त प्रत्यय के योग से शस्त कृदन्त रूप बनता है, जिसका अर्थ स्तुत या प्रशंसित है। "प्रकर्षण शस्तः प्रशस्तः" - जो उत्कृष्ट रूप में, श्लाघास्पद, प्रशंसास्पद होता है, उसे प्रशस्त कहा जाता है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र को जो प्रशस्त आय के रूप में आख्यात किया गया है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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