Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 510
________________ द्रव्यक्षपणा जिसने 'क्षपणा' इस पद को (गुरु से ) सीखा है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है यावत् (पूर्व वर्णनानुसार ) यह आगमतः द्रव्यक्षपणा का स्वरूप है। से किं तं णोआगमओ दव्वज्झवणा ?! णो आगमओ दव्वज्झवणा तिविहा पण्णत्ता । तंजहा जाणयसरीरदव्वज्झवणा १ भवियसरीरदव्वज्झवणा २ जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वज्झवणा ३। भावार्थ - नोआगमतः द्रव्यक्षपणा कितने प्रकार की कही गई है ? - यह तीन प्रकार की परिज्ञापित हुई है। १. ज्ञ शरीर द्रव्यक्षपणा २. भव्य शरीर द्रव्यक्षपणा और ३. ज्ञ शरीर - भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यक्षपणा । से किं तं जाणयसरीरदव्वज्झवणा ? जाणयसरीरदव्वज्झवणा झवणा' पयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववग़यचुयचावियचत्तदेहं सेसं जहा दव्वज्झयणे जाव सेत्तं जाणयसरीरदव्वज्झवणा । भावार्थ ज्ञ शरीर द्रव्यक्षपणा का क्या स्वरूप है? जिसने क्षपणा पद के अर्थाधिकार को जाना है, उसके चेतना रहित, प्राणशून्य, अनशन द्वारा मृत देह को देखकर कहे- इत्यादि समस्त वर्णन द्रव्य अध्ययन के समान यहाँ ग्राह्य है यावत् यह ज्ञ शरीर द्रव्यक्षपणा का स्वरूप है। से किं तं भवियसरीरदव्वज्झवणा ? ४८५ - भवियसरीरदव्वज्झवणा जे जीवे जोणिजम्मणणिक्खते सेसं जहा दव्वज्झयणे जावसेत्तं भवियसरीरदव्वज्झवणा । Jain Education International भावार्थ - भव्यशरीर द्रव्यक्षपणा का क्या स्वरूप है ? . योनि रूप जन्म स्थान में निःसृत किसी जीव का शरीर (भविष्य में क्षपणा इस पद को सीखेगा ) इत्यादि वर्णन द्रव्य अध्ययन की तरह यहाँ ज्ञातव्य है यावत् यह भव्य शरीर द्रव्यक्षपणा का स्वरूप है। से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वज्झवणा ? जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वज्झवणा जहा जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए तहा भाणियव्वा जाव से तं मीसिया । से तं लोगुत्तरिया से तं 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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