Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 514
________________ सामायिक हेतु अधिकृत ४८६ से किं तं आगमओ भावसामाइए? आगमओ भावसामाइए जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावसामाइए। भावार्थ - आगमतः भाव सामायिक का क्या स्वरूप है? भाव सामायिक (इस पद का) उपयोग युक्त ज्ञाता आगमतः भाव सामायिक रूप है। यह आगमतः भाव सामायिक का स्वरूप है। से किं तं णोआगमओ भावसामाइए? णोआगमओ भावसामाइए - गाहाओ - जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे णियमे तवे। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं॥१॥ जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य। तस्सं सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं॥२॥ शब्दार्थ - सामाणिओ - सामानिक - सन्निहित, अप्पा - आत्मा, संजमे - संयम में, तवे - तप में, केवलिभासियं - सर्वज्ञ द्वारा भाषित। . भावार्थ - नो आगमतः भाव सामायिक का क्या स्वरूप है? गाथा - जिसकी आत्मा संयम (मूलगुणों) नियम (उत्तरगुणों) और तप (अनशन आदि · तपों) में संलग्न, सन्निहित और समाहित रहती है, उसके सामायिक सिद्ध होती है। सर्वज्ञ जिनेश्वर देव ने ऐसा भाषित किया है॥१॥ जो त्रस और स्थावर - दोनों ही प्रकार के जीवों के प्रति समान भाव से वर्तन करता है, समत्व युक्त होता है, उसके सामायिक स्वायत्त होती है, ऐसी केवली भगवन्त की प्ररूपणा है॥२॥ सामायिक हेतु अधिकृत जइ मम ण पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं। ण हणइ ण हणावेइ य, सममणइ तेण सो समणो॥३॥ णत्थि य से कोइ वेसो, पिओ य सव्वेसु चेव जीवेसु। एएण होइ समणो, एसो अण्णोऽवि पजाओ॥४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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