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आय - विवेचन
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अचित्ते-सुव्वण्णरययमणिमोतियसंखसिलप्पवालरत्तरयणाणं (संतसावएजस्स) आए। सेत्तं अचित्ते।
शब्दार्थ - संतसावएजस्स - सत्स्वापतेयं - धन आदि उत्तम द्रव्य। भावार्थ - अचित्त आय का क्या स्वरूप है?
स्वर्ण, रजत, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल, लाल रत्न (माणिक) आदि उत्तम, सारयुक्त द्रव्यों की आय - प्राप्ति अचित्त आय है।
से किं तं मीसए?
मीसए-दासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरियाउज्जालंकियाणं आए। सेत्तं मीसए। सेत्तं लोइए।
शब्दार्थ - समाभरियाउज्जालंकियाणं - समाभरितातोद्यालंकृतानाम् - आभूषणों एवं झल्लरी आदि वाद्यों से सम्यक् अलंकृत।
: भावार्थ - मिश्र आय किसे कहते हैं? . आभूषणों एवं झल्लरी आदि वाद्यों से सम्यक् विभूषित दास-दासियों, अश्वों, हाथियों आदि की प्राप्ति को मिश्र आय कहते हैं।
यह मिश्र आय का स्वरूप है। इस प्रकार लौकिक द्रव्य आय का विवेचन परिसमाप्त होता है। से किं तं कुप्पावयणिए?
कुष्पावयणिए तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - सचित्ते १ अचित्ते २ मीसए य ३। तिण्णि वि जहा लोइए जाव से त्तं मीसए। सेत्तं कुप्पावयणिए।
भावार्थ - कुप्रावचनिक आय कितने प्रकार की होती है? यह सचित्त, अचित्त और मिश्र के रूप में तीन प्रकार की है। उपर्युक्त तीनों का वर्णन यावत् मिश्र पर्यन्त पूर्वकृत लौकिक आय के अनुसार करणीय है। यह कुप्रावनिक आय का स्वरूप है।
से किं तं लोगुत्तरिए? लोगुत्तरिए तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - सचित्ते १ अचित्ते२ मीसए य ।
भावार्थ - लोकोत्तरिक आय के कितने प्रकार होते हैं?
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