Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 501
________________ अनुयोगद्वार सूत्र आगमओ दव्वज्झीणे तिविहे पण्णत्ते । तंजहा - जाणयसरीरदव्वज्झीणे १ भवियसरीरदव्वज्झीणे २ जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झीणे ३ | भावार्थ - नोआगमतः द्रव्य अक्षीण' कितने प्रकार का है? नोआगमतः द्रव्य अक्षीण तीन प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है - १. ज्ञ शरीर द्रव्य अक्षीण २. भव्य शरीर द्रव्य अक्षीण और ३. ज्ञ शरीर अक्षीण! ४७६ व्यतिरिक्त द्रव्य से किं तं जाणयसरीरदव्वज्झीणे । जाणयसरीरदव्वज्झीणे - 'अज्झीण' पयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुयचावियचत्तदेहं जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियव्वं जाव सेत्तं जाणयसरीरदव्वज्झीणे । भावार्थ ज्ञ शरीर द्रव्य अक्षीण का क्या स्वरूप है? जिसने अक्षीण पद के अर्थाधिकार को जाना है, उसके चेतना रहित, प्राण शून्य, अनशन द्वारा मृत देह को देखकर आदि शेष वर्णन द्रव्य अध्ययन की तरह यहाँ ज्ञातव्य है यावत् यह ज्ञ शरीर द्रव्य अक्षीण का स्वरूप है। से किं तं भवियसरीरदव्वज्झीणे? - - भव्य शरीर भवियसरीरदव्वज्झीणे - जे जीवे जोणिजम्मणणिक्खंते जहा दव्वज्झयणे जाव सेत्तं भवियसरीरदव्वज्झीणे । Jain Education International भावार्थ - भव्य शरीर द्रव्य अक्षीण से क्या तात्पर्य है? समय पूर्ण होने पर जो जीव जन्म स्थान से निकल कर उत्पन्न हुआ इत्यादि संपूर्ण वर्णन पूर्वोक्त भव्य शरीर द्रव्य अध्ययन के समान ही यहाँ भी ग्राह्य है यावत् यह भव्य शरीर द्रव्य अक्षीण है। से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झीणे? जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झीणे सव्वागाससेढी । सेत्तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तं दव्वज्झीणे । सेत्तं णोआगमओ दव्वज्झीणे । सेत्तं दव्वज्झीणे । शब्दार्थ - सव्वागाससेढी - सर्वाकाश श्रेणी । भावार्थ - ज्ञ शरीर - भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य - अक्षीण का क्या स्वरूप है ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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