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अनुयोगद्वार सूत्र
है और भावप्रमाण भी गुण, नय और संख्या के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है। इसलिए सामायिक का समवतार - गुणप्रमाण और संख्याप्रमाण में भी हो जाता है, नयप्रमाण में नहीं।
(१५१)
निक्षेप-विवेचन से किं तं णिक्खेवे? णिक्खेवे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - ओहणिप्फणे १ णामणिप्फण्णे २ सुत्तालावगणिप्फण्णे ३।
भावार्थ - निक्षेप कितने प्रकार का होता है? यह ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न और सूत्रालापक निष्पन्न के रूप में तीन प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है।
ओघनिष्पन्न से किं तं ओहणिप्फण्णे?
ओहण्णिप्फण्णे चउब्विहे पण्णत्ते। तंजहा - अज्झयणे १ अज्झीणे २ आया ३ झवणा ४।
भावार्थ - ओघनिष्पन्न कितने प्रकार का प्रतिपादित हुआ है? यह चतुर्विधरूप प्रज्ञप्त हुआ है - १. अध्ययन २. अक्षीण ३. आय और ४. क्षपणा।
विवेचन - जो सामान्य (ओघ) अध्ययन आदि श्रुत के नाम से निष्पन्न हो उसे ओघनिष्पन्न कहते हैं।
अध्ययन से किं तं अज्झयणे?
अज्झयणे चउविहे पण्णत्ते। तंजहा - णामज्झयणे १ ठवणज्झयणे २ दव्यज्झयणे ३ भावज्झयणे ।।
भावार्थ - अध्ययन कितने प्रकार का परिज्ञापित हुआ है?
यह नाम-अध्ययन, स्थापना-अध्ययन, द्रव्य-अध्ययन और भाव-अध्ययन के रूप में चार प्रकार का प्रतिपादित हुआ है।
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