Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 498
________________ भाव-अध्ययन ४७३ यह घृत कुंभ होगा, यह मधु कुंभ होगा (अभी घट रिक्त हैं किन्तु भविष्यवर्ती पर्याय की अपेक्षा से यह ज्ञातव्य है)। यह भव्य शरीर द्रव्य अध्ययन का स्वरूप है। से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झयणे? जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झयणे पत्तयपोत्थयलिहियं । सेत्तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झयणे। सेत्तं णोआगमओ दव्वज्झयणे। सेत्तं दव्वज्झयणे। भावार्थ - ज्ञ शरीर-भव्य शरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य अध्ययन का क्या स्वरूप है? पत्र या पुस्तक में लिखे हुए . (अध्ययन) को ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य अध्ययन कहते हैं। यह नोआगमतः द्रव्य अध्ययन है। इस प्रकार द्रव्य अध्ययन का विवेचन परिसमाप्त होता है। भाव-अध्ययन से किं तं भावज्झयणे? भावज्झयणे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २। भावार्थ - भाव अध्ययन कितने प्रकार का होता है? यह आगमतः और नोआगमतः के रूप में दो प्रकार का कहा गया है। से किं तं आगमओ भावज्झयणे? आगमओ भावज्झयणे जाणए उवउत्ते। सेत्तं आगमओ भावज्झयणे। भावार्थ - आगमतः भाव अध्ययन का क्या स्वरूप है? जो अध्ययन के अर्थ का ज्ञाता या ज्ञायक होने के साथ-साथ उसमें उपयोग युक्त भी हो, वह आगमतः भावयुक्त कहलाता है। यह भाव अध्ययन का स्वरूप है। से किं तं णोआगमओ भावज्झयणे? णोआगमओ भावज्झयणे - ... गाहा - अज्झप्पस्साणयणं, कम्माणं अवचओ उवचियाणं। .. अणुवचओ य णवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छंति॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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