Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 496
________________ णामठवणाओ पुव्वं वण्णियाओ । भावार्थ द्रव्य-अध्ययन से किं तं दव्वज्झयणे? दव्वज्झयणे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २ । भावार्थ - द्रव्य अध्ययन कितने प्रकार का होता है? नाम और स्थापना विषयक वर्णन पूर्वकृत विवेचन से योजनीय है । द्रव्य-अध्ययन Jain Education International यह आगमतः और नोआगमतः के रूप में दो प्रकार का प्रतिपादित हुआ है। से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे ? आगमओ दव्वज्झयणे जस्स णं 'अज्झयण' त्ति पयं सिक्खियं, ठियं, जियं, मियं, परिजियं जाव एवं जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई दव्वज्झयणाइं । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स णं एगो वा अणेगो वा जाव सेत्तं आगमओ दव्वज्झयणे । - - भावार्थ आगमतः द्रव्य अध्ययन का क्या स्वरूप है ? जिसने (गुरु से ) 'अध्ययन' इस पद को सीख लिया है, (भलीभांति) स्थिर कर लिया है, • जित, मित और परिजित कर लिया है यावत् जितने उपयोग शून्य हैं, वे आगमतः द्रव्य अध्ययन हैं। इसी प्रकार (संग्रहनय की भांति ही) व्यवहारनय के संदर्भ में जानना चाहिए। संग्रहनय के मतानुसार एक या अनेक (आत्माएँ एक आगम द्रव्य अध्ययन हैं, इत्यादि वर्णन यहाँ पूर्वानुसार योजनीय है) यावत् यह आगमतः द्रव्य अध्ययन का स्वरूप है। से किं तं णोआगमओ दव्वज्झयणे ? णोआगमओ दव्वज्झयणे तिविहे पण्णत्ते । तंजहा - जाणयसरीरदव्वज्झयणे १ भवियसरीरदव्वज्झयणे २ जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झयणे ३ | भावार्थ - नोआगमतः द्रव्य अध्ययन कितने प्रकार का कहा गया है ? नोआगमतः द्रव्य अध्ययन तीन प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है - १. ज्ञ शरीर द्रव्य अध्ययन २. भव्य शरीर द्रव्य अध्ययन ३. ज्ञ शरीर - भव्य शरीर - व्यतिरिक्त द्रव्य अध्ययन । ४७१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534