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________________ ४७० अनुयोगद्वार सूत्र है और भावप्रमाण भी गुण, नय और संख्या के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है। इसलिए सामायिक का समवतार - गुणप्रमाण और संख्याप्रमाण में भी हो जाता है, नयप्रमाण में नहीं। (१५१) निक्षेप-विवेचन से किं तं णिक्खेवे? णिक्खेवे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - ओहणिप्फणे १ णामणिप्फण्णे २ सुत्तालावगणिप्फण्णे ३। भावार्थ - निक्षेप कितने प्रकार का होता है? यह ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न और सूत्रालापक निष्पन्न के रूप में तीन प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। ओघनिष्पन्न से किं तं ओहणिप्फण्णे? ओहण्णिप्फण्णे चउब्विहे पण्णत्ते। तंजहा - अज्झयणे १ अज्झीणे २ आया ३ झवणा ४। भावार्थ - ओघनिष्पन्न कितने प्रकार का प्रतिपादित हुआ है? यह चतुर्विधरूप प्रज्ञप्त हुआ है - १. अध्ययन २. अक्षीण ३. आय और ४. क्षपणा। विवेचन - जो सामान्य (ओघ) अध्ययन आदि श्रुत के नाम से निष्पन्न हो उसे ओघनिष्पन्न कहते हैं। अध्ययन से किं तं अज्झयणे? अज्झयणे चउविहे पण्णत्ते। तंजहा - णामज्झयणे १ ठवणज्झयणे २ दव्यज्झयणे ३ भावज्झयणे ।। भावार्थ - अध्ययन कितने प्रकार का परिज्ञापित हुआ है? यह नाम-अध्ययन, स्थापना-अध्ययन, द्रव्य-अध्ययन और भाव-अध्ययन के रूप में चार प्रकार का प्रतिपादित हुआ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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