Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 491
________________ ४६६ अनुयोगद्वार सूत्र क्षेत्रसमवतार से किं तं खेत्तसमोयारे? खेत्तसमोयारे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - आयसमोयारे य १ तदुभयसमोयारे य २। भरहे वासे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं जंबुद्दीवे समोयरइ आयभावे य। जंबुद्दीवे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं तिरियलोए समोयरइ आयभावे य। तिरियलोए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं लोए समोयरइ आयभावे यछ। सेत्तं खेत्तसमोयारे। भावार्थ - क्षेत्रसमवतार कितने प्रकार का है? यह दो प्रकार का बतलाया गया है - १. आत्मसमवतार और २. तदुभयसमवतार। आत्मसमवतार की दृष्टि से भरत क्षेत्र आत्मभाव में समवसृत है तथा तदुभय समवतार की दृष्टि से वह जंबूद्वीप में भी विद्यमान है, अपने स्वरूप में तो है ही। जंबूद्वीप आत्मसमवतार की दृष्टि से आत्मभाव में समवसृत है तथा तदुभयसमवतार की अपेक्षा से तिर्यक्लोक (मध्यलोक) में भी समवसृत है, वह निज स्वरूप में तो विद्यमान है ही। तिर्यक्लोक आत्मसमवतार की दृष्टि से आत्मभाव में समवसृत है तथा तदुभय समवतार की दृष्टि से लोक में भी समवस्थित है, अपने स्वरूप में तो है ही। यह क्षेत्रसमवतार का स्वरूप है। काल समवतार से किं तं कालसमोयारे? कालसमोयारे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - आयसमोयारे य १ तदुभयसमोयारे य २। समए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं आवलियाए * लोए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अलोए समोयरइ आयभावे य। इच्चहियं पच्चंतरे। .लोक आत्मसमवतार की अपेक्षा से आत्मभाव में समवसृत है तथा तदुभय समवतार की दृष्टि से अलोक में समवसृत है, अपने स्वरूप में तो है ही। (अन्य किसी-किसी प्रति में ऐसा अतिरिक्त पाठ भी है।) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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