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अनुयोगद्वार सू
बंभलं गेसु भवधारणिज्जा - जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंचरयणीओ । उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे ।
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महासुक्कसहस्सारेसु भवधारणिज्जा-जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ । उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे ।
आणयपाणयआरणअच्चुएसु चउसु वि भवधारणिज्जा जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि रयणीओ । उत्तरवेडव्विया जहा सोहम्मे ।
शब्दार्थ - सोहम्मे कप्पे - सौधर्म कल्प।
भावार्थ - हे भगवन्! सौधर्म कल्प के देवों की देहावगाहना कितनी बतलाई गई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी देहावगाहना भवधारणीय एवं उत्तर वैक्रिय के रूप में दो प्रकार ताई गई है।
इनमें जो भवधारणीय है, वह जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित तथा उत्कृष्टतः सात रत्न प्रमाण होती है।
(तथा) उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग परिमित तथा उत्कृष्टतः एक हजार योजन परिमित होती है।
इसी भांति ईशान कल्प के देवों की शरीरावगाहना भी कथनीय है ।
जिस प्रकार सौधर्म कल्प के देवों के संदर्भ में (पूर्वानुसार ) प्रश्न है, उसी प्रकार शेष देवों यावत् अच्युत कल्प के देवों तक प्रश्न ( एवं अवगाहना) पूर्ववत् कथनीय है।
सनत्कुमार कल्प में भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः छह रत्नि होती है । उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना उसी प्रकार कथनीय है, जिस प्रकार सौधर्मकल्प की है।
माहेन्द्रकल्प में सनत्कुमार कल्प के समान ही अवगाहना को जानना चाहिये ।
ब्रह्मलोक और लांतक इन दोनों कल्पों में भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्यतः असंख्य भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः पांच रत्नि होती है ।
उत्तर वैक्रिय शरीर की अवगाहनां सौधर्म कल्प के समान ही है।
महाशुक्र और सहस्रारकल्पों में भवधारणीयं शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः चार रनि परिमित होती है ।
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