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अनुयोगद्वार सूत्र
हे भगवन्! वैमानिक देवों के कितने वैक्रिय शरीर कहे गए हैं? हे आयुष्मन् गौतम! इनके बद्ध और मुक्त के रूप में दो प्रकार के वैक्रिय शरीर कहे गए हैं।
उनमें जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। वे कालापेक्षया असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी द्वारा अपहृत होते हैं। क्षेत्रापेक्षया वे असंख्यात श्रेणी प्रमाण हैं। वे श्रेणियाँ प्रतर के असंख्यातवें भाग तुल्य हैं। इन श्रेणियों की विष्कंभ सूची अंगुल के तृतीय वर्गमूल से गुणित द्वितीय वर्गमूल प्रमाण अथवा अंगुल के तृतीय वर्गमूल घनप्रमाण के समान है।
मुक्त वैक्रिय शरीर साधारण औदारिक शरीरों के समान ही ज्ञातव्य हैं। . . . इनके आहारक शरीरों के विषय में नैरयिकों के आहारक शरीरों के समान ही जानना चाहिए।
तैजस-कार्मण शरीरों के संदर्भ में इनके (ऊपर वर्णित) वैक्रिय शरीरों के समान वर्णन योजनीय है।
यह सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप है। इस प्रकार क्षेत्रपल्योपम का विवेचन परिसमाप्त होता है।
पुनश्च, पल्योपम का स्वरूप एवं उसकी विभागनिष्पन्नता का विवेचन पूर्ण होता है। इस प्रकार काल प्रमाण का स्वरूप पूर्ण होता है।
विवेचन - श्री प्रज्ञापना सूत्र के १२ वें शरीर पद' में पंचेन्द्रिय के १६ दण्डकों के वैक्रिय बद्ध शरीरों की असत्कल्पना से राशिएं बताई गई है। जिज्ञासुओं को वे स्थल द्रष्टव्य हैं।
इस प्रकार सूत्र पाठ में छह प्रकार के पल्योपम, सागरोपम का वर्णन किया गया है। इनमें से तीनों व्यावहारिक (उद्धार, अद्धा, क्षेत्र) पल्योपमों और सागरोपमों की प्ररूपणा मात्र तीनों सूक्ष्म पल्योपमों, सागरोपमों के स्वरूप को सरलता से समझाने के लिए की गई है। सूक्ष्म उद्धार पल्योपम सागरोपम से द्वीप समदों का परिमाण जाना जाता है। सक्षम अद्धा पल्योपम सागरोपम से चार गति के जीवों का आयुष्य मापा जाता है। सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम सागरोपम से - दृष्टिवाद के द्रव्य मापे जाते हैं। उदाहरण के रूप में सूत्र के मूल पाठ में वायुकाय के वैक्रिय बद्ध शरीरों को सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितने बताए गए हैं। ____इन उपर्युक्त छहों प्रकार के पल्योपम के कालमान की अल्पबहुत्व इस प्रकार हो सकती है - १. सबसे थोड़ा काल व्यावहारिक उद्धार पल्योपम का (संख्याता समयों जितना होने से) २. उनसे व्यावहारिक अद्धा पल्योपम का कालमान असंख्यात गुणा (असंख्याता कोटि वर्ष
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