Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 482
________________ वक्तव्यता के भेद ४५७ यह स्वसमय-वक्तव्यता का स्वरूप है। विवेचन - इस सूत्र में स्वसमय वक्तव्यता के क्रमशः विशदतामूलक स्पष्टीकरण की प्रक्रिया का वर्णन है जो लगभग सामान्य रूप से समानार्थक प्रतीयमान किन्तु सूक्ष्मता की हानि से विशदीकरण की तरतमता से युक्त विविध क्रियाओं द्वारा व्यक्त किया गया है। उनका आशय इस प्रकार है - आधविज्जइ - आख्यायतेऽनेन इति आख्यानम्। सामान्य रूप से कथन करना आख्यान है। जैसे - धर्म, अधर्म, आकाश, जीव तथा पुद्गल अस्तिकाय है। पण्णविज्जइ - प्रकर्षेण व्यज्यते ज्ञाप्यते वाऽनेन इति प्रव्यंजनं प्रज्ञापनं वा। जिसके द्वारा विवेच्य विषय को प्रकृष्ट रूप में या पृथक्-पृथक् विवेचन किया जाता है, उसे प्रव्यंजन या प्रज्ञापन कहा जाता है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि व्यंजन और व्यंजना शब्द एकार्थक हैं, जिनका अर्थ व्यक्त करना है। ____धर्मास्तिकाय आदि के लक्षणों का पृथक्-पृथक् विवेचन करना प्रज्ञापन के अन्तर्गत है, जैसे जो जीव और पुद्गल की गति में निरपेक्ष रूप से सहायक हो, वह धर्मास्तिकाय इत्यादि। - परूविज्जइ - "प्रकर्षेण रूप्यते विस्तीर्यतेऽनेन इति प्ररूपणम्" - किसी अधिकृत विषय की विस्तार पूर्वक विवेचना या व्याख्या करना प्ररूपण है। उदाहरणार्थ - धर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश हैं। आकाशास्तिकाय के अनंत प्रदेश हैं, इत्यादि। दंसिंज्ज - ‘दृश्यतेऽनेन इति दर्शनम्' - जहाँ दृष्टान्त आदि द्वारा सिद्धान्त को स्पष्ट किया जाता है, उसे दर्शन कहा जाता है। जैसे - धर्मास्तिकाय को समझाने में स्थूल दृष्टि से मछलियों के चलने में जल के सहायकत्व का उदाहरण दिया जाता है। णिदंसिज्जइ - 'निर्दृश्यतेऽनेन इति निर्दर्शनम्' - विवेच्य विषय के स्वरूप का उपनय द्वारा निरूपण करना निर्दर्शन है। जैसे पानी मछली की गति में सहायक है, वैसे ही धर्मास्तिकाय जीवों और पुद्गलों की गति में सहायक है। उवदंसिज्जइ - 'उपदृश्यतेऽनेन इति उपदर्शनम्' - विवेच्य - विषयमूलक समग्र कथन का उपसंहार करते हुए सिद्धान्त को स्थापित करना उपदर्शन है। जैसे - एवंविध (इस प्रकार के) स्वरूप युक्त द्रव्य धर्मास्तिकाय है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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