Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 432
________________ साधोपनीत उपमान ४०७ अरहंतसरिसं कयं, चक्कवट्टिणा चक्कवट्टिसरिसं कयं, बलदेवेण बलदेवसरिसं कयं, वासुदेवेण वासुदेवसरिसं कयं, साहुणा साहुसरिसं कयं। सेत्तं सव्वसाहम्मे। सेत्तं साहम्मोवणीए। शब्दार्थ - कयं - कृतं - किया, ओवम्मं - उपमा। भावार्थ - सर्वसाधोपनीत का क्या स्वरूप है? सर्वसाधर्म्य में उपमा नहीं होती तथापि उसी से (उपमान से) उसको (उपमेय को) उपमित किया जाता है (उपमान और उपमेय एक हो जाते हैं)। जैसे - अर्हन्त (तीर्थंकर) द्वारा अर्हन्त जैसा, चक्रवर्ती द्वारा चक्रवर्ती के समान, बलदेव द्वारा बलदेव जैसा, वासुदेव द्वारा वासुदेव जैसा एवं साधु द्वारा साधु के सदृश किया गया। यह सर्वसाधोपनीत का विवेचन है। इस प्रकार साधोपनीत का निरूपण परिसमाप्त होता है। विवेचन - साधोपनीत अनुमान में आए तीन भेदों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है - जैसा पहले कहा गया है, किंचित्साधर्म्य में प्रायः विसदृशता होती है। सदृशता अत्यंत अल्प होती है। यहाँ मेरु और सरसों का उदाहरण दिया गया है, उसका आशय यह है कि मेरु पर्वत और सरसों का दाना आकार, प्रकार आदि में मेरु पर्वत से सर्वथा भिन्न है। ऐसा होने के बावजूद मूर्तत्व की दृष्टि से एवं रूप, रस, गंध एवं स्पर्शवत्व की दृष्टि से उसमें किंचित् सादृश्य है। क्योंकि दोनों ही पौद्गलिक है। ___ इसी तरह सूर्य और खद्योत में केवल प्रकाशवत्ता का यत्किंचित् साम्य है। . प्रायः साधोपनीत में गाय और गवय का उदाहरण दिया गया है। ‘गो सदृशः गवयः' ऐसा प्रचलित है। गवय को नीलगाय या रोझ भी कहा जाता है। खुर, ककुद, शृंग आदि की दृष्टि से गाय और गवय में समानता है। केवल सासना - गल कम्बल, जो गाय में प्राप्त है, वह उसमें नहीं होता। इसके अलावा गवय दुधारु पशु नहीं है, पालतू नहीं है। सर्वसाधोपनीत अनुमान में उपमान और उपमेय - जो सर्वथा भिन्न होते हैं, एक हो जाते हैं। अर्थात् जहाँ वर्ण्य विषय अपनी विशेषताओं के कारण इतना विलक्षण होता है कि उसके सदृश अन्य की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है। अतएव उपमेय के अनुरूप उपमान अनुपलब्ध होने से उपमेय को ही उपमान के रूप में वर्णित किया जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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