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आगम प्रमाण
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से किं तं लोइए?
लोइए जं णं इमं अण्णाणिएहिं मिच्छादिट्ठिएहिं सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं, तंजहा - भारहं, रामायणं जाव चत्तारि वेया संगोवंगा। सेत्तं लोइए आगमे।
शब्दार्थ - अण्णाणिएहिं - अज्ञानियों द्वारा, मिच्छादिट्ठिएहिं - मिथ्यादृष्टियों द्वारा, सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं - स्वच्छंद बुद्धि एवं मान्यता द्वारा जो विकल्पित - विरचित हो, भारहं - भारत (महाभारत), वेया - वेद, संगोवंगा - सांगोपांग - अंगोपांग सहित।
भावार्थ - लौकिक का क्या स्वरूप है?
जो अज्ञानियों, मिथ्यादृष्टियों द्वारा तथा स्वच्छंद बुद्धि एवं मान्यता से विरचित हैं, वे शास्त्र लौकिक हैं, जैसे महाभारत, रामायण यावत् अंगोपांग सहित चारों वेद।
यह लौकिक आगम प्रमाण का स्वरूप है।
विवेचन - यहाँ लौकिकं आगम के रूप में वेदों का जो उल्लेख हुआ है, उसे संबंध में ज्ञातव्य है, ऋग्वेद यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद - ये चार वेद हैं। वेदों के रहस्य एवं सार तत्त्व का बोध - जिन शास्त्रों के सहारे होता है, वे वेदांग - वेद के अंग कहे गए हैं, जो संख्या में छह हैं। उनके संबंध में पाणिनीय शिक्षा (४१-४२) में कहा गया है
छन्दः पादौतु येवस्य हस्तीकल्पोऽथ पठ्यते। ज्योतिषामयनं चक्षुनिरुक्तं श्रोत्रमुच्यते॥ शिक्षा पाणं तु येवस्य, मुखं व्याकरणं स्मृतम्। तस्मात् सांगमधीत्येय, ब्रह्मलोके महीयते॥
वेद पुरुष की परिकल्पना की गई है, तदनुसार इन श्लोकों में वेद के अंगों का वर्णन है। छन्द वेद के चरण हैं, कल्प उसके हाथ हैं। ज्योतिष उसके नेत्र हैं। निरूक्त उसके कर्ण - कान कहे गए है। शिक्षा उसकी नासिका है, व्याकरण को उसके मुख के रूप में निरूपित किया गया है।
छन्द, ज्योतिष और व्याकरण का अर्थ स्पष्ट है। वैदिक कर्मकाण्ड, अनुष्ठान पद्धति, याज्ञिक विधि-विधानादि को कल्प कहा गया है।
हस्व, दीर्घ, प्लुत, उदात्त, अनुदात्त, स्वरित इत्यादि स्वर तथा व्यंजन विषयक उच्चारण विज्ञान शिक्षा के रूप में अभिहित हुआ है।
निरूक्त का तात्पर्य व्युत्पत्ति शास्त्र है, जिसमें शब्दों की वैविध्यपूर्ण व्युत्पत्तियों का ज्ञान होता है। , . .
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