Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 453
________________ ४२८ 'कम्हा?' 'इत्थं खलु दो समासा भवंति, तंजहा तप्पुरिसे य १ कम्मधारए य २ । तं ण णज्जइ कयरेणं समासेणं भणसि ? किं तप्पुरिसेणं, किं कम्मधारएणं? जड़ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणंसि तो विसेसओ भणाहि - - म् य से पसे य से पएसे धम्मे, अधम्मे य से पएसे य से पएसे अधम्मे, आगासे य से पसे य से पसे आगासे, जीवे य से पएसे य से पएसे णोजीवे, खंधे य से पएसे य से पसे णोखंधे । ' एवं वयंतं समभिरूढं संपइ एवंभूओ भणइ - 'जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं णिरवसेसं एगगहणगहियं देसे वि मे अवत्थू, पएसे वि में अवत्थू ।' सेत्तं पएसदिट्ठतेणं । सेत्तं णयप्पमाणे । शब्दार्थ - छण्हं छह के, खरो गधा, कीओ क्रीत - खरीदा, गोट्ठियाणं गोष्ठिक - सहभागी या हिस्सेदार, वत्तुं - कहने के लिए, अणवत्था अनवस्था, कसिणं कृत्स्न समग्र, णज्जइ न्याय संगत, पडिपुण्णं - प्रतिपूर्ण, एगगहणगहियं - एक ग्रहण ग्रहीत, अवत्थु - वस्तुत्वविहीन । अनुयोगद्वार सूत्र - - - Jain Education International भावार्थ - प्रदेश दृष्टांत का क्या स्वरूप है ? प्रदेश दृष्टांत का स्वरूप इस प्रकार है - जैसे नैगमनय के अनुसार ( एक व्यक्ति ) कहता है - छह द्रव्यों के प्रदेश होते हैं, जैसे - 'धर्मास्तिकाय प्रदेश, अधर्मास्तिकाय प्रदेश, आकाशास्तिकाय प्रदेश, जीवास्तिकाय प्रदेश, स्कन्धप्रदेश तथा प्रदेशप्रदेश ।' - नैगमनय के अनुसार ऐसा कहने वाले को किसी ने संग्रहनय के अनुसार कहा प्रदेश हैं, तुम जो यह कहते हो, वह उचित नहीं है । कैसे ? - क्योंकि जो देश का प्रदेश है, वह उसी द्रव्य का है, जिसका वह प्रदेश है। इस संदर्भ में क्या कोई दृष्टांत है ? (हाँ दृष्टांत है) जैसे- (कोई कहे) मेरे दास ने गधा खरीदा। दास मेरा है, इसलिए गधा For Personal & Private Use Only छहों के भी मेरा है। ऐसा मत कहो - छह के प्रदेश होते हैं, पांच के ही प्रदेश होते हैं। यथा - धर्मास्तिकाय www.jainelibrary.org

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