Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 477
________________ ४५२ अनुयोगद्वार सूत्र बोल ५४, ६०वां निकालकर) (७.) स्थितिबंध के कारणभूत अध्यवसाय स्थान (८.) अनुभागबंघ के कारणभूत अध्यवसाय स्थान (5.) योगच्छेद प्रतिभाग (१०.) उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी (कालचक्र) के समय। इन दशों को मिलाने पर जो इकट्ठी बड़ी राशि होवे उसको फिर पूर्ववत् (पहले की तरह) तीन बार वर्गित कर एक रूप न्यून करने से उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात' होते हैं। ___ परित्तानन्त का वर्णन जहण्णयं परित्ताणतयं केवइयं होइ? जहण्णयं असंखेजासंखेजयमेत्ताणं रासीण अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं परित्ताणंतयं होइ। अहवा उक्कोसए असंखेज्जासंखेजए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं परित्ताणतयं होइ। तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं परित्ताणतयं ण पावइ। भावार्थ - जघन्य परित्तानन्त का कितना प्रमाण है? जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि का उसी से - जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि से गुणन करने पर प्राप्त परिपूर्ण राशि जघन्य परित्तानंत का प्रमाण है। अथवा उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात में एक का प्रक्षेप करने से भी, जोड़ने पर भी जघन्य परित्तानन्त होता है। तत्पश्चात् यावत् उत्कृष्ट परित्तानन्त का स्थान प्राप्त न होने तक अर्थात् उससे पूर्व तक अजघन्य-अनुत्कृष्ट - मध्यम परित्तानन्त के स्थान होते हैं। उक्कोसयं परित्ताणंतयं केवइयं होइ? जहण्णयपरित्ताणंतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं परित्ताणतयं होइ। अहवा जहण्णयं जुत्ताणतयं रूवूणं उक्कोसयं परित्ताणतयं होइ। भावार्थ - उत्कृष्ट परित्तानन्त का कितना प्रमाण है? जघन्य परित्तानन्त की राशि को उसी से - जघन्य परित्तानन्त की राशि से गुणित करने पर जो राशि प्राप्त हो उसमें से एक कम करने से प्राप्त राशि उत्कृष्ट परित्तानन्त का प्रमाण है। अथवा जघन्य युक्तानन्त की राशि में से एक कम करने से भी उत्कृष्ट परित्तानन्त की राशि निष्पन्न होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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