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अनुयोगद्वार सूत्र
जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा तिविहा पण्णत्ता। तंजहा - एगभविए १ बद्धाउए २ अभिमुहणामगोत्ते य ३।
भावार्थ - द्रव्यसंख्या का क्या स्वरूप है? यह आगमतः और नोआगमतः के रूप में दो प्रकार की परिज्ञापित हुई है। यावत् ज्ञशरीर-भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यसंख्या का क्या स्वरूप है? ज्ञशरीर-भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यसंख्या तीन प्रकार की परिज्ञापित हुई है - १. एकभविक २. बद्धायुष्क और ३. अभिमुखनामगोत्र।
विवेचन - इस सूत्र में एकभविक, बद्धायुष्क तथा अभिमुखनामगोत्र शब्दों का जो प्रयोग हुआ है, वह विशेष अभिप्राय लिए हुए है। एकभविक का यह तात्पर्य है कि जिस जीव ने अभी तक शंख पर्याय की आयु का बंध नहीं किया है किन्तु मरणोपरांत जो शंख पर्याय प्राप्त करेगा, उसे यहाँ एकभविक के रूप में अभिहित किया गया है।
जिस जीव ने शंखपर्याय में उत्पन्न होने योग्य आयुष्य का बंध कर लिया है, वह जीव बद्धायुष्क के रूप में वर्णित हुआ है। ___आसन्न भविष्य में जो जीव शंख योनि में जन्म लेगा तथा जिसके द्वीन्द्रिय आदि नामकर्म एवं नीच गोत्रात्मक गोत्र कर्म - जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त के पश्चात् उदयाभिमुख हैं, उस जीव का अभिमुखनामगोत्र शंख के रूप में कथन किया गया है।
ये त्रिविध जीव भावशंखत्व के कारण होने से ज्ञशरीर एवं भव्यशरीर - इन दोनों से व्यतिरिक्त - भिन्न द्रव्य लिए हुए हैं।
एगभविए णं भंते! ‘एगभविए' त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? जहण्णेण शंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। भावार्थ - हे भगवन्! एकभविक जीव एकभविक' इस नाम में कितने कालपर्यन्त रहता है?
हे आयुष्मन् गौतम! यह (इस स्थिति में) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्टतः पूर्वकोटि वर्ष पर्यन्त रहता है।
बद्धाउए णं भंते! 'बद्धाउए' त्ति कालओ केवच्चिरं होड? जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीतिभागं।
भावार्थ - हे भगवन्! बद्धायुष्क जीव 'बद्धायुष्क' इस नाम पर्याय में कियत्काल पर्यन्त रहता है?
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