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अनुयोगद्वार सूत्र
किसी वस्तु के वैशिष्ट्य का यथार्थ बोध प्राप्त कराने के लिए तत्सदृश वस्तु द्वारा प्रतिपादित किए जाने की विशेष परम्परा रही है।
साहित्य शास्त्र की तरह प्रमाण शास्त्र में भी उपमान को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है। विशेषतः मीमांसा दर्शन में इसका उपपादन हुआ है।
से किं तं किंचिसाहम्मोवणीए?
किंचिसाहम्मोवणीए - जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो, जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो, जहा आइच्चो तहा खजोओ, जहा खजोओ तहा आइच्चो, जहा चंदो तहा कुमुदो, जहा कुमुदो तहा चंदो। सेत्तं किंचिसाहम्मोवणीए।
शब्दार्थ - मंदरो - मंदर पर्वत, गोप्पयं - गोष्पद (जल से भरा गाय के खुर का निशान), आइच्चो - आदित्य (सूर्य), खजोओ - खद्योत - जुगनू, कुमुदो - कुमुद पुष्प।
भावार्थ - किंचित् साधोपनीत उपमान का क्या स्वरूप है?
जैसा मंदर पर्वत है, वैसा ही सरसों (सर्षप) है एवं जैसा सर्षप है वैसा ही मंदर पर्वत है। जैसा समुद्र है, वैसा ही गोष्पद है और जैसा गोष्पद है, वैसा ही समुद्र है। जैसा आदित्य है, वैसा ही खद्योत है और जैसा खद्योत है, वैसा ही आदित्य है। जैसा चन्द्रमा है, वैसा ही कुमुद पुष्प है और जैसा कुमुद पुष्प है, वैसा ही चन्द्रमा है।
यह किंचित्साधोपनीत उपमान का स्वरूप है। से किं तं पायसाहम्मोवणीए?
पायसाहम्मोवणीए - जहा गो तहा गवओ, जहा गवओ तहा गो। सेत्तं पायसाहम्मोवणीए।
भावार्थ - प्रायः साधोपनीत का क्या स्वरूप है? जैसी गाय है, वैसा ही गवय है एवं जैसा गवय है, वैसी ही गाय है। यह प्रायः साधोपनीत का निरूपण है। से किं तं सव्वसाहम्मोवणीए? सव्वसाहम्मे ओवम्मे णत्थि, तहावि तेणेव तस्स ओवम्मं कीरइ, जहा अरहंतेहिं
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