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अनुयोगद्वार सूत्र
अणागयकालगहणं - गाहा - धूमायंति दिसाओ, संविय-मेइणी अपडिबद्धा।
___वाया णेरइया खलु, कुवुट्ठिमेवं णिवेयंति॥४॥
अग्गेयं वा वायव्वं वा अण्णयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा - कुवुट्ठी भविस्सइ। सेत्तं अणागयकालगहणं। सेत्तं विसेसदिढं। सेत्तं दिट्ठसाहम्मवं। सेत्तं अणुमाणे। ___शब्दार्थ - धूमायंति - धुंधलेपन से युक्त, संविय-मेइणी - संवरण - उमस युक्त पृथ्वी, अपडिबद्धा - प्रतिबद्ध रहित, जेरइया - रज रहित।
भावार्थ - अनागतकाल ग्रहण का क्या स्वरूप है?
दिशाएं धूमिल हों, पृथ्वी उमस के आवरण से युक्त न हो (अप्रतिबद्ध), वायु रज रहित हो तो वर्षा नहीं होती है॥ ४॥
आग्नेय मण्डल या वायव्य मंडल या अन्य कोई अप्रशस्त उत्पात देखकर, वर्षा नहीं होगी, ऐसा अनुमान किया जाता है।
यह अनागत कालग्रहण का स्वरूप है। यह विशेष दृष्ट का निरूपण है। इस प्रकार दृष्टि साधर्म्यवत् अनुमान का विवेचन समाप्त होता है।
विवचेन - इस सूत्र में विपरीत दृष्ट साधर्म्य का स्वरूप बतलाया गया है। जिस प्रकार पूर्व वर्णित दृष्टि साधर्म्य के अनुमान विवेचन में भूत, वर्तमान और भविष्यत् तीनों ही कालों में दृष्ट हेतुओं और चिह्नों को देखकर निष्पन्न होने वाली अनुकूल स्थितियाँ ज्ञात होती हैं, उसी प्रकार विपरीत दृष्ट साधर्म्य से प्रतिकूल स्थितियों का अनुमान होता है।
प्रस्तुत सूत्र में वर्षा न होने का सूचन करने वाले विपरीत हेतुओं का वर्णन है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आग्नेय मंडल तथा वायव्य मंडल में होने वाले उत्पातों को देखकर वर्षा न होने का अनुमान किये जाने का उल्लेख है।
आग्नेय मंडल में - विशाखा, भरणी, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपदा, मघा तथा कृत्तिका का समावेश है।
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