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साधोपनीत उपमान
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वायव्य मंडल के अन्तर्गत चित्रा, हस्त, अश्विनी, स्वाति, मार्गशीर्ष, पुनर्वसु एवं उत्तराफाल्गुनी समाविष्ट हैं।
उपमान प्रमाण से किं तं ओवम्मे?
ओवम्मे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - साहम्मोवणीए १ वेहम्मोवणीए य २॥ भावार्थ - उपमान प्रमाण कितने प्रकार का है? यह दो प्रकार का कहा गया है - १. साधोपनीत २. वैधोपनीत। .
साधोपनीत उपमान से किं तं साहम्मोवणीए?
साहसम्मोवणीए तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - किंचिसाहम्मोवणीए १ पायसाहम्मोवणी २ सव्वसाहम्मोवणीए ३।
भावार्थ - साधोपनीत उपमान कितने प्रकार का कहा गया है? . साधोपनीत उपमान तीन प्रकार का बतलाया गया है - १. किंचित् साधोपनीत २. प्रायः साधोपनीत तथा ३. सर्वसाधोपनीत। ... विवेचन - इस सूत्र में किए गए साधर्म्य के भेद तरतमता के आधार पर हैं। किंचित् साधर्म्य का अभिप्राय अल्पांशतः सदृशता या समानता है। प्रायः साधर्म्य का आधार अधिकांशतः साम्य है तथा सर्वसाधर्म्य का आधार सर्वांशतः समानता है। __ अधिक, अधिकतर, अधिकतम - यह त्रिविध तारतम्य है। जिसे अंग्रेजी व्याकरण में Possitive, Comparative & Superlative कहा जाता है। जैसे Good, Better & Best.
साधर्म्य का विवेचन उपमान, उपमेय, समान धर्म और वाचकपद के आधार पर किया जाता है। जिसको उपमित किया जाता है, उसे उपमेय कहा जाता है, जिस द्वारा उपमित किया जाता है, उसे उपमान कहा जाता है। दोनों में जो सादृश्य प्राप्त होता है, उसे साधारण धर्म कहा जाता है। जिस पद से यह सूचित होता है, उसे वाचक पदं कहा जाता है। साहित्यशास्त्र में उपमा संज्ञक अर्थालंकार में उन्हें निरूपित किया गया है।
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